Zinda Muhaware

Hardbound
Hindi
9788170552581
5th
2022
136
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हिन्दुस्तान के बँटवारे की तकलीफ़ को करोड़ों ने झेला-भोगा। उन्हीं में फैज़ाबाद के रहमतुल्लाह भी थे एक। वह ख़ुद अपना गाँव-घर की ज़मीन, अपना वतन छोड़कर नहीं जा सकते थे। लेकिन उन्हीं का छोटा बेटा निज़ाम चला गया पाकिस्तान। जिस हाल में रहते हुए, जितना बड़ा आदमी बन गया, यह एक अलग बात है, लेकिन सबसे बड़ा सच यह रहा कि अपनी धरती अपना आसमान, अपने लोग भुलाए नहीं भूले। बाप, भाई, बहन, भाभी, भतीजे ने ही नहीं, सुन्दर काकी, मँगरु काका और बचपन के गँवार साथी ब्रजलाल ने भी खींचा और इतना खींचा कि लौटने का वक्त आते-आते वह बिल्कुल टूट गया। यह पीड़ा, यह दर्द, यह छटपटाहट बड़े ही मार्मिक ढंग से उकेरे गये हैं, इस उपन्यास के पन्ने दर पन्ने, दरअसल लेखिका ने 'ज़िन्दा मुहावरे' में सिर्फ एक परिवार के माध्यम से इस कद्दावर सच को सामने ला खड़ा किया है कि इतने बड़े ऐतिहासिक हादसे से उपजी पीड़ा किसी एक क़ौम की नहीं, बल्कि समूची इंसानियत की है। 'ज़िन्दा मुहावरे' की संरचना में धरती को मोह लेने वाली बास-गंध के साथ अनुकूल भाषा का जीवंत प्रयोग व रिश्तों के साथ वास्तविक तालमेल ने अलग-अलग समाजों, वर्गों और विचारों को एक सूत्र में जोड़कर प्रमाणित कर दिया कि सभी धाराएँ एकजुट होकर एक मुख्यधारा का निर्माण करती हैं और सांस्कृतिक एकरसता की विरासत को अपने समचेपन में ठोस धरातल पर खड़ा कर देती हैं। इसी सच के कारण यह रचना तमाम भ्रमों, शंकाओं को निरस्त करते हुए इस सच्चाई को सामने लाती है। कि राजनैतिक स्वार्थों के कारण भले ही धरती बँट जाए पर इन्सानी रिश्ते नहीं बँटते!

नासिरा शर्मा (Nasira Sharma )

नासिरा शर्मा1948 में इलाहाबाद (उ. प्र.) में जन्मी नासिरा शर्मा को साहित्य के संस्कार विरासत में मिले। फारसी भाषा साहित्य में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। हिन्दी, उर्दू, फारसी, अंग्

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