Gali Kooche

Hardbound
Hindi
9789350721438
2nd
2012
290
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....यदि एक ओर निर्मल वर्मा कहते हैं, कि कहानी की मृत्यु से चर्चा आरम्भ करनी चाहिए, तो दूसरी ओर रवीन्द्र कालिया का भी यही कहना है, कि 'मुझे कहानी के उस स्वीकृत रूप से घोर वितृष्णा है, जिस अर्थ में वह आज कहानी के नाम से जानी जाती है।' इस विरोध को एकरसता की क्षोभ-भरी प्रति-क्रिया के रूप में लिया जा सकता है। इन नवयुवक लेखकों की कहानियों से साफ झलकता है, कि वे आज की सामाजिक सतह से नीचे जाकर 'मानव-नियति' और ‘मानव-स्थिति’ सम्बन्धी बुनियादी प्रश्न उठा रहे हैं। लगता है, युग नये सिरे से अपने-आप से भयावह प्रश्नों का साक्षात्कार कर रहा है। वैसे किताबी नुस्खे और चालू फ़ैशन यहाँ भी हैं, किन्तु 'प्रश्नात्मक दृष्टि' खरी और तेज है। आज के मानवीय सम्बन्धों की अमानवीयता को बेध कर पहचानने की अद्भुत क्षमता इस दृष्टि में है। इसलिए जिस निर्ममता के साथ सीधी भाषा में ये आज की मानव-स्थिति को कम-से-कम रेखाओं में उतार कर रख देते हैं, वह पूर्ववर्ती कथाकारों के लिए स्पर्धा की वस्तु हो सकती है। कहानी के रूपाकार और रचना-विधान की दृष्टि से ये कहानियाँ एक अरसे से उपयोग में आने वाले कथागत साज-संभार को एकबारगी उतार कर काफी हल्की हो गई हैं-हल्की, लघु और ठोस ।

- नामवर सिंह

रवीन्द्र कालिया (Ravindra Kalia)

रवीन्द्र कालिया जन्म : जालन्धर, 1938निधन : दिल्ली, 2016रवीन्द्र कालिया का रचना संसारकहानी संग्रह व संकलन : नौ साल छोटी पत्नी, काला रजिस्टर, गरीबी हटाओ, बाँकेलाल, गली कूचे, चकैया नीम, सत्ताइस साल की उम

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