अपनी बड़ी बहन और उपेन्द्र राय की माताश्री स्व. राधिका राय की याद में -
“मुझे क्या इसलिए रक्खा था अपनी कोख में तुमने
कि इक दिन तुम चली जाओगी रोता छोड़कर मुझको
मेरी आवाज़ के आँसू
मेरा उतरा हुआ चेहरा
मेरी रोती हुई आँखें
तुम्हें वापस बुलाती हैं
मेरा खोया हुआ बचपन
मेरे रूठे हुए सपने
मेरे इस गाँव की मिट्टी
तुम्हें वापस बुलाती है
मेरी पाली हुई चिड़िया
मेरी ये चाँद की बुढ़िया
मेरी रोती हुई गुड़िया
तुम्हें वापस बुलाती है
नहीं तो कल सबेरे तक यही दुनिया
मुझे छेड़ेगी यह कहकर सतायेगी
कि मैं जननी को गंगा के हवाले करने आया हूँ
चिता अर्थी को देकर मैं उजाला करने आया हूँ”
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