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पत्रकार जब देर रात अपना दफ़्तर छोड़ता है, तो उसका थका हुआ शरीर एक ज़िन्दा जीवाश्म की तरह होता है। उसके हाथ खून से सने होते हैं। सैकड़ों हत्याएँ, दुर्घटनाएँ, दुष्कर्म, लूट, गैंगवार, दंगे, साज़िशें आदि-आदि ख़बरों की गूंज वो अपने दिमाग में लेकर घर पहुँचता है। घर पहुँचते ही सबसे पहले अपने दोनों हाथ धोता है। इसके बाद अपने परिजनों को छूने की हिम्मत जुटा पाता है। यहाँ एक डर उसके भीतर भी रहता है। कहीं बिन धोए हाथों पर लगे ख़बरों के रंग सोते हुए उसके अपनों को डरा न दें। पत्रकारों के जीवन में ज़िन्दगी के रंगों के अलावा भी ख़बरों के कई रंग हैं।
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