"मैंने अपनी मनःस्थिति को व्यक्त करने के लिए 'मधुशाला' का प्रतीक ही क्यों चुना इसे बताना समालोचक का काम है और आज तक हिंदी के किसी समालोचक ने इस प्रश्न पर विचार करने की कृपा नहीं की। मैंने तो बिना किसी विचार के यह प्रतीक चुन लिया था, क्योंकि यही मेरी उस समय की मनोदशा को व्यक्त करने को पूर्णतया उपयुक्त था। ठीक कहूँ तो मैंने इसे नहीं चुना, उसने मुझे चुन लिया था, मुझ पर जादू-सा कर दिया था, मैं कोई दूसरा प्रतीक चुन ही नहीं सकता था।"
- 'आल इंडिया रेडियो लखनऊ में भाषण' से, 1941
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