‘सखाराम बाइंडर’ से पूर्व लिखा तथा खेला गया विजय तेंडुलकर का यह नाटक ‘दम्भद्वीप’ अपने में नितान्त अनूठा है। लेखक द्रष्टा होता है यह सुना था। अपनी आँखों के आगे चरितार्थ होते तभी देखा जब कल्पना में बरसों पहले उरेहा हुआ यह नाटक इतिहास के रंगमंच पर साकार हो उठा। नाटक का अनुवाद पूरा होते ही देश में ‘इमरजेंसी’ का शिकंजा कस उठा। नाटक का दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि उस समय इसका मंचन तो दरकिनार, कमरे में बैठकर इस पर चर्चा भी वर्जित हो उठी। दो वर्ष की क़ैद के बाद ही यह नाटक तेंडुलकर के दर्शकों और पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत हो सका। आशा है पाठकों की उम्मीदों पर यह नाटक खरा उतरेगा।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review