Lout Jati Hai Udhar Ko Bhi Nazar

Hardbound
Hindi
9789386799524
1st
2017
264
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कान्तिकुमार जैन द्वारा लिखित 'लौट जाती है उधर को भी नज़र' संस्मरणों का संग्रह है। संस्मरणों के माध्यम से लेखक ने समस्याओं पर प्रकाश डाला है। लेखक ने अपने संस्मरण का विषय उदात्त, महत्त्वपूर्ण, वरेण्य, प्रातः स्मरण कोटि के पात्रों को ही नहीं वरन् साधारण जन को भी चुना है जैसे - डाकिये, ड्राइवर, सब्ज़ीवाले, बिजलीवाले, रिक्शावाले आदि ।

लेखक संस्मरणों में नाटकीयता का संस्पर्श है, रोचकता का आकर्षण है, अपने को न बचाकर चलने का कलेवर है और बीच-बीच में घटनाओं को जोड़ देने का अन्दाज़ है।

लेखक ने पत्रिका सम्पादन में नये-नये प्रयोग करते हुए हिन्दी के पाठ्यक्रम में ग़ालिब, मीर, इक़बाल व फ़िराक़ जैसे कवि और उमराव जान अदा व रानी केतकी की कहानी को भी हिन्दी गद्य में स्थान दिया। लेखक ने देखा जो साहित्य में है वह लोकप्रिय नहीं और जो लोकप्रिय है वह साहित्य नहीं। अतः लेखक ने इन दोनों के बीच पुल बनकर दूरी को पाट दिया। जैसे ताँबा मिलाये बिना गहने नहीं गढ़े जाते वैसे ही रोचक प्रसंगों के बिना संस्मरण पठनीय नहीं होते। पाठकों के दिल में जगह बनाने के लिए लेखक थोड़ी-सी अश्लीलता से भी परहेज नहीं करता। कूक्तियाँ शब्द लेखक का स्वरचित शब्द है ।

लेखक समाज की, शिक्षा की, न्याय की समस्या संस्मरण के माध्यम से चित्रित करते हैं। शोध के विषय में लेखक कहते हैं कि शोधकार्य से शोधक एवं शोध निदेशक की वेतनवृद्धि, स्थायीकरण जब तक जुड़े रहेंगे तब तक मौलिक विषयों पर शोधकार्य नहीं हो सकते।

समाज की चिरपरिचित समस्या पर प्रहार करते हुए लेखक कहते हैं कि स्त्रियाँ पैदा नहीं होतीं, वरन् स्त्रियाँ बनाई जाती हैं। लेखक का यह कथन सार्वकालिक व सार्वभौमिक सत्य है कि या तो महत्त्वाकांक्षाएँ पालो मत, यदि पालो तो योग्य बनो। उसी आकाश को छूने का प्रयत्न करो, जिसे हाथ उठाकर, पंजों के बल खड़े होकर छू लो। ज़्यादा की कोशिश में तुम्हारे पाँव धरती से उखड़ जाएँगे क्योंकि अपनी क्षमता से ज्यादा कामना करना अपने साथ विश्वासघात करना है। लेखक संस्मरणों के कुशल शिल्पकार हैं। संस्मरण लेखक की स्मृति में ही नहीं, धमनियों में प्रवाहित होता है। अशोक वाजपेयी ने उन्हें संस्मरणों का पुनर्वास करने वाला कहा है।

कान्तिकुमार जैन (Kanti Kumar Jain )

कान्तिकुमार जैन  नौ सितम्बर, 1932 को सागर (म.प्र.) के देवरीकलां में जन्मे कान्तिकुमार जैन ने कोरिया (छत्तीसगढ़) के बैकुंठपुर से 1948 में मैट्रिक करने के बाद उच्च शिक्षा सागर विश्वविद्यालय में प्राप

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