Fasak

Rakesh Tiwari Author
Paperback
Hindi
9789352296798
1st
2017
256
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फसक' उत्तर-सत्य वाले इस दौर की एक जीती-जागती तस्वीर है जहाँ 'अच्छे दिन' के नाम पर अफ़वाह, अन्धविश्वास और फिरकापरस्ती के दिन फिर गये हैं; तथ्य, तर्क-विवेक और वैज्ञानिक नजरिए के प्रति आकर्षण का अल्पकालिक उभार अपने उतार पर है; उन गिरोहों की चाँदी है जिनके पास 'भावनाएँ मथने वाली मथानियाँ' हैं और एक नया सार्वजनिक दायरा रचते फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे द्रुत माध्यमों को भी उल्टी गंगा बहाने के अभियान में जोत दिया गया है। बचवाली नामक पहाड़ी क़स्बे की जमीन पर ऐसे दौर का साक्षात्कार करता यह उपन्यास तेजू, रेवा, पुष्पा, चन्दू पाण्डेय, भैयाजी, नन्नू महाराज, पी थ्री, लालबुझक्कड़, मोहन सिंह जैसे अलग- अलग पहचाने जा सकने वाले पात्रों के जरिये हमें हमारी दुनिया का एक नायाब 'क्लोज-अप' दिखाता है। यह वही दुनिया है जिसे हम अख़बारों, न्यूज चैनलों और अपने गली-मोहल्लों में रोज देखते हैं, पर इन सभी ठिकानों पर बिखरे हुए बिन्दुओं को जोड़कर जब राकेश एक मुकम्मल तस्वीर उभारते हैं तो हमें अहसास होता है कि इन बिन्दुओं की योजक- रेखाएँ अभी तक हमारी निगाहों से ओझल थीं। अचरज नहीं कि इस तस्वीर को देखने के बाद, उपन्यास के अन्त में आये लालबुझक्कड़ के ऐलान को हम अपने ही अन्दर से फूटते शब्दों की तरह सुनते हैं।

समय की नब्ज पर उँगली होते हुए भी 'फसक' में ज्वलन्त दस्तावेज़ रच देने का बहुप्रतिष्ठित लोभ इतना हावी नहीं है कि क़िस्सागोई पृष्ठभूमि में चली जाए। फसकियों ( गपोड़ियों) के इलाके से आनेवाले राकेश तिवारी किस्सा कहना जानते हैं। जिन लोगों ने 'कठपुतली थक गयी', 'मुर्गीखाने की औरतें', 'मुकुटधारी चूहा' जैसी उनकी कहानियाँ पढ़ी हैं, उन्हें पता है कि इस कथाकार की पकड़ से न समय की नब्ज छूटती है, न पाठक की। राकेश की खास बात है, इस चीज की समझ कि वाचक की बन्द मुट्ठी लाख की होती है और खुलकर भी खाक की नहीं होती बशर्ते सही समय पर खोली जाए। थोड़ा बताना, थोड़ा छुपा कर रखना, और ऐन उस वक़्त उद्घाटित करना जब आपका कुतूहल सब्र की सीमा लाँघने पर हो-यह उनकी क़िस्सागोई का गुर है। इसके साथ चुहलबाज भाषा और व्यंग्यगर्भित कथा-स्थितियाँ मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि एक बार उठाने के बाद आप उपन्यास को पूरा पढ़कर ही दम लें।

-संजीव कुमार

राकेश तिवारी (Rakesh Tiwari)

राकेश तिवारी की कहानियाँ पिछले कई दशकों से हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं, जिनमें सारिका, धर्मयुग, रविवार, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, हंस, कथादेश, पाखी, नय

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