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गत कुछ वर्षों में हिन्दी दलित साहित्य में जो हलचल दिखाई दी है उसमें कई नाम उभरे हैं, उनमें से एक नाम डॉ. श्यौराज सिंह बेचैन का है। डा. श्यौराज सिंह का कार्य शोध, आलोचना, कथा, कविता और पत्रकारिता आदि कई विधाओं में है और हर विधा के केन्द्र में दलित समस्या है, दलित जीवन के प्रश्नों से जूझता हुआ उनका अत्यन्त संवेदनशील कवि है और वह अपने पूरे दायित्वबोध के साथ है।
श्यौराज सिंह बेचैन हमारे समय के एक अपरिहार्य कवि के रूप में साहित्यिक जगत में विद्यमान हैं । उनकी कविताएँ मानवीय सरोकारों की कविताएँ हैं और अपने समाज के हकों की माँग करती कविताएँ हैं। उनकी कविता में उनके अपने अभावों के संघर्षी चित्र हैं। उनकी कविता सहज-स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। उसमें बनावटीपन नाममात्र भी नहीं है। ये कविताएँ उनके संघर्षमयी जीवन की पृष्ठभूमि में तैयार होती हैं। वे कबीर की भाँति फक्कड़ व्यक्तित्व की डिमांड करती हैं। उनके गीतों में तो लयात्मकता है ही, दूसरी मुक्त छन्द कविताओं में भी विचार की लय पाठक को बाँधे रखती है। कवि का मूल स्वरूप व्यंग्य का रहा है। उनके पास समाज को देखने की अपनी दृष्टि है । वे अलोकतान्त्रिक मूल्यों से अपने पाठकों को सचेत करते हुए समकालीन विडम्बनाओं से दो-चार होते दिखाई देते हैं। वे वर्ण, जाति, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, नारी उत्पीड़न आदि को देश के लिए खतरा बताते हुए समता का मार्ग प्रशस्त करते हैं। कवि का प्रस्तुत कविता-संग्रह भारत में दलितों और स्त्रियों की बदहाली और उनके संघर्ष को जानने के लिए अनिवार्य और पठनीय संग्रह है।
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