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Hindi Dalit Sahitya Ka Vikas

Hardbound
Hindi
9789350728369
2nd
2024
212
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स्वतन्त्र भारत में अम्बेडकर की प्रेरणा से ही दलित आन्दोलन का उदय होता है और दलित जागृति भी होती है। अम्बेडकर ने शिक्षा, संगठन तथा संघर्ष पर बल दिया। उनकी वाणियों से तथा अनुभवों से दलित समुदाय ने ऊर्जा ग्रहण कर ली। उसकी ऊष्मा हम दलित-विमर्श में देखते हैं। उत्तराधुनिक समय में हाशियेकृत वर्ग का परिधि से केन्द्र की ओर आना एक महान घटना है। भारत में मराठी से शुरू होकर दलित लेखन अन्य भाषाओं में विस्तार पाया है। हिन्दी दलित लेखन तक़रीबन तीन दशक पुराना है। दलित रचनाकार सहानुभूति को नहीं, स्वानुभूति को महत्त्व देते हैं। भोगे हुए यथार्थ की भट्ठी में वे रचना के कच्चे माल को पकाते हैं और जिसके द्वारा सहृदयों में समाज की कुरीतियों तथा कुव्यवस्थाओं के प्रति घृणा पैदा करने की कोशिश करते हैं, जो विशाल अर्थ में जनजागृति की पृष्ठभूमि तैयार करने में सहायता देती है । खैर, मेरी दलित साहित्य पर दिलचस्पी पिछले दस-पन्द्रह सालों से रही है। कई पुस्तकें इस विषय पर हिन्दी में उपलब्ध हैं, पर बार-बार लगा कि हिन्दी में दलित साहित्य की विविध विधाओं के ऐतिहासिक विकासक्रम पर पुस्तकों का अभाव है। उसी सोच का परिणाम है यह पुस्तक ।

डॉ प्रमोद कोवप्रत (Dr. Pramod Kovaprath)

डॉ. प्रमोद कोवप्रत जन्म : 1973 केरल के कण्णूर ज़िले के इरिणाव गाँव में।शैक्षिक योग्यताएँ : एम.ए. हिन्दी, एम.ए.अंग्रेज़ी, नेट (यू.जी.सी.), बी.एड., अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, पीएच.डी. हिन्दी ।प्रका

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