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सुनीता बुद्धिराजा

सुनीता बुद्धिराजा

वर्षों तक सुरीले व्यक्तियों को सुनते-सुनते, सुनीता का कान सुरीला हो गया। उठते-बैठते संगीत को सुनना आदत सी हो गयी। चूँकि मंच संचालन का शौक था,इसलिए संगीतकारों से भेंट मुलाकात का सिलसिला शुरू वर्षों तक सुरीले व्यक्तियों को सुनते-सुनते, सुनीता का कान सुरीला हो गया। उठते-बैठते संगीत को सुनना आदत सी हो गयी। चूँकि मंच संचालन का शौक था, हो गया। जानने की उत्सुकता ने सुनीता को हरदम अपने पास एक छोटा टेप-रिकार्डर या डिक्टाफोन रखने की आदत डाल दी। जब, जहाँ सम्भव हुआ, कलाकारों के साथ बातचीत रिकार्ड कर ली। सात सुरों के बीच इसी आदत का परिणाम है। कलाकारों से अत्यधिक स्नेह मिला। सुनीता स्वयं को भाग्यशाली समझती हैं कि उन्होंने ऐसे युग में जन्म लिया जब संगीत की इतनी महान विभूतियों को व्यक्तिगत रूप से जानने और उन्हें सुनने का अवसर उन्हें मिला है।

कविता, साक्षात्कार और यात्रा-वृत्तान्त लिखना भी सुनीता को अच्छा लगता है। सबसे अच्छा लगता है पढ़ना और संगीत सुनना ।

सुनीता का व्यवसाय है- जनसम्पर्क। उनकी पुस्तकें - आधी-धूप, अनुत्तर तथा प्रश्न- पांचाली (तीनों कविता संकलन) काफी चर्चित हुई हैं। प्रश्न- पांचाली का मंचन-निर्देशन विख्यात रंग-निर्देशक दिनेश ठाकुर ने किया है। टीस का सफ़र साक्षात्कारों पर आधारित पुस्तक है, जिसका अनुवाद तेलुगु में हो चुका है। सुनीता ने चार काफ़ी टेबल बुक्स का भी सम्पादन किया है, जिनमें से दो आन्ध्र प्रदेश, एक कर्नाटक तथा एक डॉ. विजय माल्या के सम्बन्ध में है।