Simone de Beauvoir

सिमोन द बोव्आर

सिमोन द बोव्आर - पेरिस के एक धार्मिक और पूँजीपति परिवार में जन्मी सिमोन द बोव्आर ने अपनी नियति को नकारते हुए एक निर्भीक और आधुनिक जीवन गुज़ारा। Des Cahiers de jeunesse (दे काइये द जनेस ) से लेकर La Cérémonie des adieux (ला सेरेमोनी देज़ादीय) और उनकी पाँच कहानियों में उनका लेखन मूलतः आत्म-लेखन है।

सिमोन द बोव्आर ने संस्मरण लिखे जिसमें उन्होंने स्वयं हमें अपने जीवन और अपने काम से अवगत कराया। 1958 से 1972 तक आत्मकथात्मक संस्मरण के चार खण्ड प्रकाशित हुए - Mémoires d'une jeune fille rangée (मेम्वार द’इयून जन फ़ीय रौंजे), La Force de l'age ( ला फ़ोर्स द लाज), La Force des choses ( ला फ़ोर्स दे शोज़), Tout compte fait (तू कोंत फ़े), जिसमें 1964 की कहानी - Une mort tres douce ( इयून मौर्र थे दूस) जोड़ी गयी

है। लेखक के लिए आत्मकथात्मक लेखन की व्यापकता एक ज़रूरी विरोधाभास में अपना अर्थ पाती है : ज़िन्दगी जीने की ख़ुशी या लिखने की ज़रूरत के बीच चयन करना उनके लिए हमेशा मुश्किल था, एक ओर सुविधाओं पर निर्भरता, दूसरी ओर विशुद्ध कठोर अनुशासन- उनके लिए इस दुविधा से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता अपने अस्तित्व को अपने लेखन का विषय बना कर ही सम्भव था।

सिमोन द बोव्आर का जन्म 9 जनवरी, 1908 को पेरिस में हुआ था । उन्होंने एक कैथोलिक स्कूल में बाकालोरेया यानी बारहवीं तक की पढ़ाई की। 1929 में दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और 1943 तक मारसेई, रुओं और पेरिस में पढ़ाया। उनका साहित्यिक पदार्पण L'Invitée (लऐंवीते, 1943) के साथ माना जाना चाहिए। इसके बाद Lesang des autres (ल सौं देज़ोत्र, 1945 ); Tous les hommes sont mortels (तू लेज़ ओम्म सौं मोर्रतेल, 1946); Les Mandarins (ले माँदारें), वह उपन्यास जिसने उन्हें 1954 में गोंकुर्र पुरस्कार दिलवाया; Les Belles Images (ले बेल्ज़ ईमाज, 1966), et La Femme rompue (ला फ़ाम्म रौमप्यु, 1968)।

सार्त्र की मृत्यु के बाद, सिमोन द बोव्आर ने 1981 में La Cérémonie des adieux (ला सेरेमोनी देज़ादीय) और 1983 में Lettres au Castor (लेत्र ओ कास्तर) प्रकाशित किया, वे पत्र-संग्रह जो उन्हें सार्त्र से प्राप्त हुए थे। सार्त्र के साथ उन्होंने Les Temps modernes (ले तौं मोदेन) नामक पत्रिका आरम्भ की और अस्तित्ववादी आन्दोलन के एक महत्त्वपूर्ण नेता के रूप में उभरीं। अपनी मृत्यु के दिन, 14 अप्रैल, 1986 तक, वे सक्रिय रूप से इस पत्रिका में योगदान करती रही थीं और नारीवाद के साथ उनकी प्रतिबद्धता विभिन्न और असंख्य रूपों में व्यक्त हुई । बोआर अपनी पीढ़ी के सबसे प्रभावशाली विचारकों में से एक थीं।

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