Shri Muni 108 Pranamya Sagar
अर्हं श्री मुनि 108 प्रणम्य सागर जी महाराज -
पूर्व नाम : प्र. सर्वेश जी।
पिता-माता : श्री वीरेन्द्र कुमार जी जैन एवं श्रीमती सरिता देवी जैन।
जन्म : 13-09-1975, भाद्रपद शुक्ल अष्टमी जन्म।
स्थान : भोगाँव, ज़िला मैनपुरी (उत्तर प्रदेश)। वर्तमान में सिरसागंज, फिरोज़ाबाद (उ.प्र.)
शिक्षा : बीएस.सी. (अंग्रेज़ी माध्यम)
गृह त्याग : 09.08.1994।
क्षुल्लक दीक्षा : 09.08.1997, नेमावर।
एलक दीक्षा : 05.01.1998, नेमावर।
मुनि दीक्षा : 11.02.1998, माघ सुदी 15, बुधवार, मुक्तागिरीजी
दीक्षा गुरु : आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज।
कृतियाँ: आपने चाहे प्राकृत हो संस्कृत हो अथवा अंग्रेज़ी सभी भाषाओं में अनुपम एवं अद्वितीय कृतियों की रचना की है। प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी, दार्शनिक प्रतिक्रमण, तिथ्यर भावणा, बरसाणु पेक्खा (कादम्बनी टीका), स्तुति पथ, प्रश्नोत्तर रत्नमालिका, अर्चना पथ, पाइए सिक्खा, अनासक्त महायोगी, श्री वर्धमान स्त्रोत, अन्तगूंज बेटा, नयी छहढाला, जैन सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, मनोविज्ञान, लोक विज्ञान, Fact of Fate, Talk for Learners आदि 80 से भी अधिक कृतियों की रचना की है।
अर्हं ध्यान योगः प्राचीन जैन श्रमण परम्परा पर आधारित आपने ध्यान योग की विधा को श्रावकों के लिए अर्हं ध्यान योग के रूप में सुगम बनाया।