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पद्मा सचदेव

पद्मा सचदेव

जम्मू में 1940 में जनमी पद्मा सचदेव को साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्कार विरासत में मिले। पहले उन्होंने डोगरी कवयित्री के रूप में ख्याति प्राप्त की और लोकगीतों से प्रभावित होकर कविता और गीत लिखे । बाद में हिन्दी और गद्य में भी साधिकार लिखा ।

अब तक डोगरी में उनके सात कविता-संग्रह - मेरी कविता मेरे गीत, तवी ते झन्हां, न्हैरियां गलियां, पोटा पोटा निम्बल, उत्तारबैहनी, धैन्थियां और अक्खर कुंड प्रकाशित हैं। हिन्दी में उनके तेरी ही बातें सुनाने आये रुबाइयाँ; अब न बनेगी देहरी, नौशीन, भटको नहीं धनंजय और जम्मू जो कभी शहर था चार उपन्यास; गोदभरी, बू तू राजी, इन बिन कहानी-संग्रह; मितवाघर, दीवानखाना और अमराई तीन साक्षात्कार; मैं कहती हूँ आँखिन देखी यात्रा-वृत्तान्त; बूँदबावड़ी आत्मकथा प्रकाशित हो चुके हैं।

सम्मान-पुरस्कार : 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' (1970), सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार (1987), हिन्दी अकादेमी पुरस्कार (1987-88), उत्तर प्रदेश हिन्दी अकादेमी का सौहार्द पुरस्कार (1989), आन्ध्र प्रदेश का जोशुआ पुरस्कार (1999), मा. दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, मध्य प्रदेश सरकार का कबीर सम्मान, जम्मू-कश्मीर सरकार के 'रोब ऑफ ऑनर' तथा राजा राममोहन राय पुरस्कार के अतिरिक्त पद्मा जी 'पद्मश्री' उपाधि (2001) से अलंकृत हैं।

4 अगस्त 2021 को निधन