Bankimchandra Chattopadhyaya
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय
बंकिमचन्द्र चटर्जी (1838-1894) बांग्ला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है।
आधुनिक युग में बांग्ला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरू हुआ। इसमें राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, परिचन्द्र मित्र, माइकल मधुसूदन दत्त, बंकिमचन्द्र चटर्जी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बांग्ला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बांग्ला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों में शायद बकिमचन्द्र चटर्जी पहले साहित्यकार थे।
रचनाएँ : बकिमचन्द्र चटर्जी की पहचान बांग्ला कवि, उपन्यासकार, लेखक और पत्रकार के रूप में है। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना 'राजमोहन्स वाइफ थी। उनकी पहली प्रकाशित बांग्ला कृति 'दुर्गेशनांदिनी' मार्च 1965 में छपी थी। उनकी अगली रचना 'कपालकुण्डला' थी। इसे उनकी सबसे अधिक रूमानी रचनाओं में से एक माना जाता है। उन्होंने 1872 में मासिक पत्रिका 'बंगदर्शन' का भी प्रकाशन किया। अपनी इस पत्रिका में उन्होंने 'विषवृक्ष' उपन्यास का क्रमिक रूप से प्रकाशन किया। 'कृष्णकांतेर विल' में चटर्जी ने अंग्रेजी शासकों पर तीखा व्यंग्य किया है। 'आनन्दमठ' राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। चट्टर्जी का अन्तिम उपन्यास 'सीताराम' है। इसमें मुस्तिम के एक हिन्द शासक का विरोध दर्शाया गया है।
उनके अन्य उपन्यासों में 'दुर्गेशनंदिनी', 'मृणालिनी', 'इन्दिरा', 'राधारानी', 'कृष्णकांतेर दफ्तर', 'देवी चौधरानी और मोचीराम गरेर जीवनचरित' शामिल है उनकी कविताएँ' ललिता ओ मानस' नामक संग्रह में प्रकाशित हुई। उन्होंने धर्म, सामाजिक और समसामयिक मुद्दों पर आधारित कई निबन्ध भी लिखे।
बकिमचन्द्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया। बांग्ला में सिर्फ बंकिम और शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएँ हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती हैं।