Satyavati Malik
स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय सत्यवती मलिक का जन्म कश्मीर में हुआ था। यहीं पर उनकी माता देवकी साहनी ने सबसे पहली धर्मनिरपेक्ष पुत्री पाठशाला की स्थापना कर महिलाओं को शिक्षित करने का क्रान्तिकारी कार्य किया था। सत्यवती जी के पिता का घर बुद्धिजीवियों का केन्द्र हुआ करता था। उनके यहाँ भारत के सभी प्रमुख राजनीतिज्ञ, जैसे जवाहर लाल नेहरू, अब्दुल गफ़्फ़ार खाँ, बौद्ध विचारक भदन्त आनन्द कौसल्यायन सहज महसूस करते थे। ऐसी ही गहमागहमी सत्यवती जी के कलकत्ते वाले घर में देखी जाती थी। 'विशाल 'भारत' के सम्पादक बनारसीदास चतुर्वेदी और अन्य अनेक स्वाधीनता संग्राम सेनानी उनके घर को अपनत्व का बसेरा समझते थे। ऐसे सुधी विद्वानों में शान्तिनिकेतन में कार्यरत पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी भी थे। साथ ही साथ प्रख्यात कलाकारों यथा नन्दलाल बोस, सुधीर खास्तगीर, शान्ति घोष से सत्यवती जी का घना अपनापा था।
दिल्ली का उनका निवास स्थान तो एक बेजोड़ बसेरा था, जहाँ सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, हरिवंश राय बच्चन, शिवमंगल सिंह 'सुमन', अज्ञेय आदि लेखक बराबर मिलते और नव साहित्य की गतिविधियों पर चर्चा व संवाद करते थे।
दिल्ली में ही बनारसीदास चतुर्वेदी और जैनेन्द्र के साथ सत्यवती जी ने हिन्दी भवन की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
सत्यवती जी साहित्य, संगीत और कला के प्रति समान भाव से समर्पित थीं । गन्धर्व महाविद्यालय और सरस्वती समाज के कार्यों के प्रति उनकी निष्ठा अतुलनीय कही जाएगी। भारत में महिला उत्थान के लिए उनकी माता जी ने जो शुरुआत की थी उसकी परम्परा का निर्वहन सत्यवती जी आजीवन करती रहीं। उन्होंने अनेक संस्थाओं की नींव रखी जो शिक्षा, नृत्य, संगीत व कला के लिए जानी जाती हैं। पर्यावरण, सामाजिक समरसता, मानवीय संवेदनशीलता के दर्पण में उनकी रचनात्मक कविताएँ व कहानियाँ झिलमिलाती हैं। वे सदैव ऐसी अग्रणी लेखिका रही हैं जिन्होंने अपनी कहानियों के बल पर हिन्दी साहित्य में अपना अलग स्थान बनाया है।