Acharya Janaki Vallabha Shastri

आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री 

5 जनवरी 1916 को औरंगाबाद जिले के दक्षिण-पश्चिम में बसे गाँव मैगरा में जन्म।

कार्यक्षेत्र : 'भारत भारती पुरस्कार' से सम्मानित छायावादोत्तर काल के सुविख्यात कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का काव्य-संसार बहुत ही विविध और व्यापक है। प्रारंभ में उन्होंने संस्कृत में कविताएँ लिखीं। फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में आए।

कविता के क्षेत्र में उन्होंने कुछ सीमित प्रयोग भी किए और सन् चालीस के दशक में कई छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं, जो गाथा नामक उनके संग्रह में संकलित हैं । इसके अलावा उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की और राधा जैसा श्रेष्ठ महाकाव्य रचा। परंतु शास्त्री जी की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है ।

इस क्षेत्र में उन्होंने नए-नए प्रयोग किए जिससे हिंदी गीत का दायरा काफी व्यापक हुआ। वे न तो किसी आंदोलन से जुड़े, न ही प्रयोग के नाम पर ताल, तुक आदि से खिलवाड़ किया । फिर भी वे छायावाद से लेकर नवगीत तक हर आंदोलन के प्रतिभावान कवि रहे। छंदों पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में है कि इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊँचाई को छू पाते हैं ।

उनकी कुछ महत्त्वपूर्ण कृतियाँ इस प्रकार हैं : मेघगीत, अवन्तिका, श्यामासंगीत, राधा (सात खण्डों में), इरावती, एक किरण : सौ झाइयाँ, दो तिनकों का घोंसला, कालीदास, बाँसों का झुरमुट, अशोक वन, सत्यकाम, आदमी, मन की बात, जो न बिक सकी, स्मृति के वातायन, निराला के पत्र, नाट्य सम्राट पृथ्वीराज, कर्मक्षेत्रे : मरुक्षेत्रे, एक असाहित्यिक की डायरी आदि ।

7 अप्रैल 2011 को उनका निधन हुआ।

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