Lakshminarayan Lal
डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल (1927-1987)
हिन्दी नाटक और रंगमंच को नई दिशा और पहचान प्रदान करनेवाले आधुनिक समर्थ नाटककार के रूप में, आधुनिक हिन्दी कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में एक मूर्धन्य व्यक्तित्व के रूप में, एक चिन्तनशील साहित्यकार और सांस्कृतिक कृतिकार के रूप में स्व. डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल का कृतित्व आधुनिक हिन्दी साहित्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
स्व. डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल का जन्म 4 मार्च, 1927 को ग्राम जलालपुर, जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ। मृत्यु 20 नवम्बर, '87 को दिल्ली में ।
प्रयाग विश्वविद्यालय से 'हिन्दी कहानियों की शिल्पविधि का विकास' नामक ग्रन्थ पर डाक्ट्रेट ।
प्रमुख कृतियाँ
अनुसंधान : हिन्दी कहानियों की शिल्प-विधि का विकास, रंगमंच और नाटक की भूमिका, पारसी हिन्दी रंगमंच, आधुनिक हिन्दी नाटक और रंगमंच, रंगमंच देखना और जानना आदि ।
उपन्यास : धरती की आँखें, काले फूल का पौधा, बया का घोंसला और साँप, रूपाजीवा, बड़ी चम्पा छोटी चम्पा, मन वृन्दावन, प्रेम अपवित्र नदी, हरा समन्दर गोपी चन्दर, शृंगार, बसन्त ऋतु की प्रतीक्षा, पुरुषोत्तम आदि ।
कहानी-संग्रह : नए स्वर नई रेखाएँ, सूना आँगन रस बरसै, एक और कहानी, एक बूँद जल, डाकू आए थे, मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ ।
नाटक : मादा कैक्टस, सुन्दर रस, रातरानी, सूखा सरोवर, अन्धा कुआँ, मिस्टर अभिमन्यु, सूर्यमुख, कर्फ्यू, व्यक्तिगत, अब्दुल्ला दीवान, यक्ष प्रश्न, एक सत्य हरिश्चन्द्र, पंचपुरुष, लंका-कांड, गंगा-माटी, नरसिंह कथा, राम की लड़ाई, चन्द्रमा आदि।