Louise Brown
लुइज़ ब्राउन बर्मिंघम विश्वविद्यालय में एशियाई स्टजीज़ की प्रोफ़ेसर, अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम की निदेशक और एशियाई सेक्स इंडस्ट्री से सम्बन्धित एचआईवी/एड्स रिसर्च प्रोजेक्ट की संचालक हैं। पिछले दिनों वे वेश्यावृत्ति पर अपने अकादमीय शोध के लिए लाहौर के पुराने वेश्याबाज़ार हीरा मंडी में पाँच दिन तक रहीं और इससे सम्बन्धित फील्ड वर्क भी पाँच महीने तक किया।
लुइज़ ब्राउन ने अपनी विख्यात पुस्तक 'यौन दासियाँ' (सेक्स स्लेब्ज़) में एशियाई सेक्स बाज़ार के उन अछूते पहलुओं को उजागर किया है जो पिछले दिनों जापान में हुई एक ब्रिटिश बार होस्टेस की हत्या के बाद सामने आने शुरू हुए हैं। यह पहलू है वेश्यावृत्ति के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर औरतों की तिज़ारत हालाँकि औरतों की ख़रीद-बेच का यह कारोबार कई शताब्दियों से सारी दुनिया में चल रहा है, और इसमें एशिया की भूमिका भी कोई नयी नहीं है, पर इसके नये और चौंका देने वाले आयाम हैं: इसका विस्तार, इसकी मात्रा, वेश्यावृत्ति में धकेली जाने वाली स्त्रियों की घटती हुई उम्र, इस तिज़ारत में लगे हुए संगठनों का आधुनिक और ग्लोबल चरित्र।
लुइज़ ब्राउन का विचार है कि एशियाई सेक्स इंडस्ट्री का मूल स्त्रोत एशियाई सांस्कृतिक मूल्य ही हैं। हालाँकि उनका यह परिप्रेक्ष्य कुछ लोगों को विवादास्पद और विलक्षण लग सकता है, पर उनके तथ्यों और विश्लेषण से साबित हो जाता है कि 'एशियाई मूल्यों' की तथाकथित अन्तर्निहित सम्पूर्णता अपने आप में एक मिथक के अलावा कुछ नहीं है। ब्राउन दिखाती हैं कि केवल पश्चिमी पर्यटक ही नहीं, बल्कि एशियाई ग्राहक भी बड़े पैमाने पर इन वैश्याओं के ख़रीदार हैं। पुस्तक की सामग्री जुटाने के लिए ब्राउन ने यौन कर्मियों, उनके परिजनों, ग्राहकों और उनके हितों के लिए काम करने वाले कल्याणकारी संगठनों के पदाधिकारियों के साथ मुलाकातें कीं। इन लोगों के कथन पुस्तक की प्रामाणिकता में वृद्धि करते हैं।