G. Shankar Kurup
जी. शंकर कुरुप -
मध्य केरल के नायत्तोह गाँव के एक सरल सहज छोटे-से परिवार में 5 जून, 1901 को जनमे जी. शंकर कुरुप को आठ वर्ष की अवस्था में ही अमरकोश, सिद्धरूपम् (संस्कृत व्याकरण) आदि ग्रन्थ कण्ठस्थ हो गये थे। बाद में तत्कालीन प्रसिद्ध मलयालम कवि कुंजीकुट्टन तम्पुरान की प्रेरणा से उनकी काव्य-चेतना में प्रथम अंकुर फूटे। अपनी युवावस्था तक आते-आते वह प्रकृति के अनन्य उपासक बन गये। उनकी काव्य-रचना ने मलयालम के क्षेत्र में उत्तरोत्तर सम्मान और ख्याति पायी। शीघ्र ही उनकी गणना श्रेष्ठ कवियों में की जाने लगी। कुरुप की कुल मिलाकर 37 कृतियाँ प्रकाशित हैं। इनमें 30 मौलिक हैं और 7 अनुवाद हैं।
साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1963) और प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार (1965) से सम्मानित।
श्री कुरुप का 2 फ़रवरी, 1978 में देहावसान हो गया।