Devaki Hona Yashoda Bhi

Hardbound
Hindi
9789350008638
1st
2011
72
If You are Pathak Manch Member ?

आज उदासीन धरती पर मैं अपनी कविता के अन्तरंग अनुभवों से टिकी हुई हूँ। अपनी कविता में मैं आत्मीय अनुभूतियों को अकृत्रिम रूप में ही अभिव्यक्त करना चाहती हूँ । समकालीन समय सर्जनशीलता पर अधिक जोर देता-सा नहीं लगता। अपने प्रयोजन के मानक में वह उसे तोलना चाहता है । आज चेतना की सूक्ष्मता अपनी सुकुमारिता खोती जा रही है यह अहसास भी होने लगा है, अतः कवि अनजाने में पाठकों के लिए एक वस्तु सा बनता जा रहा है; फिर भी वह किसी को आहत करना नहीं चाहता। किन्तु, उसमें सत्य, शिव और सुन्दर के प्रति आस्था बनी रहती है । और मुझे लगता है मानो मेरी कविता मेरे लिए काल से काल को जोड़ने का सम्पर्क सूत्र है, अटूट । वह मंगल सूत्र के समान सुरक्षित, संरक्षित है उसी से मेरा काव्य-जीवन अवक्षयित समय के द्वारा कतई कलंकित नहीं हुआ है। सौन्दर्यबोध, अनुराग मेरी कविता की सुकुमारिता है । मेरी कविताओं के इस संकलन, 'देवकी होना, यशोदा भी...' में मेरे लिए मानो उपस्थित वर्तमान में महत्त्वपूर्ण है शैशव । विशाल जीवन में सुन्दर स्नेहमय और आत्मीयता के उपादानों में शैशव ही भरा पूरा कर देता है। लगता है सुन्दर बचपन था जिसका, वह ही है सब से अधिक सौभाग्यशाली ।

श्रीनिवास उद्गाता (Dr. Shrinivas Udgata)

show more details..

मनोरमा विश्वाल महापात्र (Manorama Vishwal Mahapatra)

डॉ. मनोरमा विश्वाल महापात्र काव्य और कला की सारस्वत तीर्थ भूमि शान्तिनिकेतन की छात्रा थीं डॉक्टर विश्वाल महापात्र । काव्य- जिज्ञासा, जो उन्हें आतुर करती रही है; आपके काव्य संग्रहों में 'थरे ख

show more details..

My Rating

Log In To Add/edit Rating

You Have To Buy The Product To Give A Review

All Ratings


No Ratings Yet

Related Books

E-mails (subscribers)

Learn About New Offers And Get More Deals By Joining Our Newsletter