Janta Ke Beech : Janta Ki Baat

Author
Hardbound
Hindi
9789350721988
1st
2008
208
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नुक्कड़ नाटक के शोध, अध्ययन, अध्यापन और उसकी प्रस्तुति से जुड़ी रहने वाली डॉ. प्रज्ञा द्वारा सम्पादित 'जनता के बीच जनता की बात' हिंदी के नुक्कड़ नाटकों की पिछले तीन दशकों की यात्रा के विभिन्न पड़ावों की रचनात्मक प्रस्तुति है। इन तीन दशकों में नुक्कड़ नाटक ने भारतीय समाज में सक्रिय साम्प्रदायिकता, जातिवाद, अशिक्षा, असमानता, शोषण, बेरोज़गारी, युद्ध और हिंसा जैसी अनेक मानव-विरोधी ताकतों का जमकर विरोध किया है और निरंतर यह संदेश दिया है कि यदि समाज को बदलना है तो संगठित होकर संघर्ष करना होगा।

आपात्काल और उसके बाद बनी राजनीतिक-संस्कृति और सामाजिक-समीकरणों के बीच यथास्थितिवाद को तोड़ने और मेहनतकश जनता के लिए एक वैकल्पिक समाज-व्यवस्था का सपना बुनने में नुक्कड़ नाटक एक मज़बूत सांस्कृतिक हथियार रहा है। इसलिए आज एक जनवादी कला माध्यम के रूप में नुक्कड़ नाटक की लोकप्रियता बढ़ी हैं; परंतु यह भी देखने में आया है कि नुक्कड़ नाटक के संग्रहों की संख्या अभी भी कम है। इससे आम धारणा यह बनती है कि नुक्कड़ नाटक तो बिना किसी स्क्रिप्ट्स के बस यों ही इम्प्रोवाइज़ेशन के जरिये तैयार कर लिए जाते हैं। ऐसे में हिंदी क्षेत्र में सक्रिय नाट्य मंडलियों व नुक्कड़ नाटककारों के नाटकों का संग्रह के रूप में प्रकाश में आना एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। अतः यह संग्रह न केवल नुक्कड़ नाटकों के मौलिक स्क्रिप्ट्स उपलब्ध कराता है बल्कि आशा है कि नयी नाट्य संस्थाओं के लिए यह मार्गनिर्देशक का कार्य भी करेगा।

प्रज्ञा (Pragya )

1971 में दिल्ली में जन्म। दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम. ए., एम. फिल. तथा पीएच. डी. । कथन, पहल, सामयिक वार्त्ता, अभिव्यक्ति, लोकायत, और अनभै सांचा जैसी पत्रिकाओं में साहित्यिक, सामाजिक,

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