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Ram Kee Awadharana Kerala Mein

Hardbound
Hindi
9789357759311
1st
2023
272
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एक आदिवासी कथा के अनुसार हनुमान द्वारा विरचित रामायण के पन्ने एक पहाड़ के ऊपर से जब चारों ओर बिखर गये तो वाल्मीकि ने उसे एकत्र कर रामायण की रचना की। मतलब, राम वाल्मीकि के पहले ही लोक कथाओं में थे। उनकी परम्परा दीर्घ थी। ए.के. रामानुजन एक लोककथा को यों उद्धृत करते हैं- “भूमि के एक छिद्र से जब राम की अँगूठी गायब हो गयी तो उसकी खोज में हनुमान पाताल में पहुँचते हैं। वहाँ की आत्माओं के सम्राट ने हनुमान से कहा कि राम अनेक हुए, किस राम की अँगूठी की तलाश में आये हो? अनेक रामों का अवतार हुआ है, किसी एक अवतार के खत्म होते ही दूसरा अवतार जन्म लेता है। एक थाली में अनेक अँगूठियाँ दिखाई दीं। ये सब राम की हैं। इनसे चुनो। तुम्हारे राम भी लव-कुश को राज सौंपकर सरयू में डूब गये।"

मलयालम में एषुत्तच्छन की रामायण में सीता कहती हैं : "रामायण के कई रूप कविप्रवरों द्वारा आनन्द के साथ कहते सुने मैंने ।" इसका तात्पर्य है कि रामकथा सारी भारतीय भाषाओं में कई रूपों में उपलब्ध है। तुलु जैसी न स्वीकृति प्राप्त भाषाओं में भील-संथाली जैसी आदिवासी भाषाओं में तथा बालिनीस, असमीस, कम्बोडियन, चीनीस, जापानीस, लावोसियन, मलेशियन, तिब्बतियन भाषाओं में लिखित रामायण प्राप्त हैं। संस्कृत में पच्चीस पाठभेद हैं। फादर कामिल बुल्के ने 'रामकथा' में बुद्ध-जैन पाठों को मिलाकर 300 रामायणों का ज़िक्र किया है। रामकथा का लचीलापन उसका महत्त्व है। भारत को एक साथ मिलाने के लिए गांधीजी ने राम को साधन बनाया।

܀܀܀

....चौदहवीं शताब्दी में तिरुवनन्तपुरम के दक्षिण में कोवलम के समीपस्थ अय्यप्पिल्ली आशान द्वारा रचित है रामकथप्पाट्टु । वे मलयालम के होमर नाम से विख्यात थे। तिरुवनन्तपुरम श्रीपद्मनाभ मन्दिर में 'चन्द्रवलयम' नामक वाद्योपकरण के साथ उत्सव के अवसरों पर इसका गायन होता था। साधारण जनता के लिए वाल्मीकि रामायण को आधार रूप में ग्रहण कर लिखा गया यह काव्य संगीतात्मक इतिहास ग्रन्थ है। आकार में एषुत्तच्छन के रामायण से बड़े इस काव्य में युद्धकाण्ड आधे भाग में है। यह पाट्टुद्रविड छन्द में है, मलयालम, तमिल एवं संस्कृत की संकर भाषा का प्रयोग किया गया है। कविता और गीतों के पूर्ण संयोग के कारण तमिल में चिलप्पतिकारम से इसकी तुलना की जा सकती है। मलयालम के राम कथात्मक काव्यों में पूनम नम्पूतिरी का 'रामायण चम्पू' कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। गद्य-पद्य शैली में पाँच सगों में, बीस भागों में रामावतार, ताटकावध, अहल्यामोक्ष, सीता स्वयंवर और परशुराम विजय, अयोध्याकाण्ड में विच्छिन्नाभिषेक और खरवध, किष्किन्धाकाण्ड में सुग्रीव-मित्रता, बालि-वध, उद्यान-प्रवेश और अंगुलीयांक हैं। युद्धकाण्ड में लंकाप्रवेश, रावणवध, अग्निप्रवेश, अयोध्याप्रवेश तथा राज्याभिषेक एवं उत्तरकाण्ड में सीतापरित्याग, अश्वमेध एवं स्वर्गारोहण हैं। यह रचना संस्कृत के अनेक चम्पुओं पर आधारित है।

- इसी पुस्तक से

के. वनजा (K. Vanja )

के. वनजा जन्म : 15 नवम्बर, 1959शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), पीएच.डी., डी.लिट्. (हिन्दी) ।प्रकाशित पुस्तकें : साहित्य का पारिस्थितिक दर्शन (पर्यावरण), इको-फेमिनिज़्म (स्त्री विमर्श), माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाओ

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एन. मोहनन (N. Mohanan)

एन. मोहनन जन्म : 2 फरवरी, 1953शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी), एम. फिल. (हिन्दी), पीएच. डी. (हिन्दी) ।प्रकाशन : अधूरेपन का अहसास (1984), उत्तरशती का हिन्दी उपन्यास (2004), समकालीन हिन्दी कहानी (2007), आलोचना के आयाम (2008), आत्मनिर

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