इस पुस्तक में सामान्यतया और मुख्यतया
सांस्कृतिक, राजनीतिक संगठन, धर्म, कला
और शिक्षा जैसे पहलुओं को समाहित करने
का प्रयास किया गया है लेकिन साथ ही उन
पक्षों पर जैसे कि सामाजिक संरचना,
अर्थव्यवस्था और तकनीक पर भी बल दिया
गया है जिन्हें परम्परागत और पूर्व के सर्वेक्षण
में अपर्याप्त प्राथमिकता दी जाती रही है। इस
लम्बे कालखण्ड और दुरूह विषय के
सुविधाजनक, समुचित और व्यवस्थित
अध्ययन के लिए इसे तीन कालखण्डों क्रमशः
600-200 ईसा, 900-500 ईसा और
500-750 ईसा में विभाजित किया गया
है। इस सन्दर्भ में यह तथ्य ध्यातव्य और
द्रष्टव्य है कि कथित अन्तिम चरण में पुस्तक
का कमोबेश 60 फ़ीसदी भाग अन्तर्भूत है।
ऐसा केवल दो-ढाई दशक के नजदीकी
कालखण्ड होने के कारण लाजिमी और
स्वाभाविक दिलचस्पी का विषय नहीं है
बल्कि पूरे कालखण्ड से सम्बद्ध प्रामाणिक
प्राथमिक सामग्री, ऐतिहासिक अभिलेखों,
व्यापक एवं विस्तारित ऐतिहासिक सिद्धान्तों,
पाण्डुलिपियों, विदेशी यात्रियों के
यात्रापवृत्तान्तों और यूरोपीय वाणिज्यिक
अभिलेखों की शक्ल में अनेक पुस्तकों की
उपलब्धता के कारण भी है, वास्तव में हम
लोग पूर्ववर्ती सैकड़ों वर्षों की तुलना में इस
कथित शताब्दी से अधिक अवगत हैं। यह
हमें इस दौर के हर पहलू को विस्तार और
गहरे जाकर पड़ताल करने के लिए प्रेरित
करता है जो इसके पूर्ववर्ती कालखण्ड के
लिए सम्भव नहीं था । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ
कि इन परिस्थितियों के बरअक्स सर्वेक्षण के
लिए की जाने वाली शताब्दियों को यान्त्रिक
रूप से श्रेणीबद्ध और वर्गीकृत करना
अनुचित और अविवेकी होगा। बेहतर और
तार्किक यह होगा कि जिसके सन्दर्भ में हमें
अधिक ज्ञात है; अथवा जिनसे सम्बन्धित
प्रामाणिक साक्ष्यों और स्रोतों की उपलब्धता
सहज और सुलभ है उन्हें केन्द्रीय विषय
बनाया. जाये और उनके बारे में
अधिक-से -अधिक लिखा जाये ।
-प्रस्तावना से
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