Ajatshatru

Paperback
Hindi
9788126320851
4th
2019
100
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जयशंकर प्रसाद -
जयशंकर प्रसाद के नाटकों के बिना हिन्दी नाटकों पर की गयी कोई भी बातचीत अधूरी होगी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने नाट्य विधा को जिस मुकाम पर छोड़ा था, प्रसाद ने अपनी नाट्य सृजन यात्रा वहीं से शुरू की। भारतेन्दु ने अपने समय के नये नाटकों के पाँच उद्देश्य बताये थे—श्रृंगार, हास्य, कौतुक, समाज, संस्कार और देश-वत्सलता। ये सभी प्रसाद के नाटकों में भी मिलते हैं लेकिन प्रसाद की विशेषता यह है कि वे अपने नाटकों को इन उद्देश्यों से आगे ले जाते हैं। उनके नाटकों में राष्ट्रीयता, स्वाधीनता संग्राम और पुनर्जागरण के स्वप्नों को विशेष महत्त्व मिला है। उनकी प्रमुख नाट्य कृतियाँ हैं—विशाख (1921), आजतशत्रु (1922), कामना (1924), जनमेजय का नागयज्ञ (1926), स्कन्दगुप्त (1928), एक घूँट (1930), चन्द्रगुप्त (1931, इसे आरम्भ में 'कल्याणी परिणय' के नाम से लिखा गया था), और ध्रुवस्वामिनी (1933)। कहने की आवश्यकता नहीं कि 'ध्रुवस्वामिनी' प्रसाद के उत्कर्ष काल की रचना है। इसमें उनकी प्रतिभा, अध्यवसाय और कलात्मक संयम—सबके चरम रूप के दर्शन होते हैं। याद रखना चाहिए कि यह वही कालखण्ड है जब वे 'कामायनी' जैसी कालजयी कृति की रचना के लिए आवश्यक तैयारियों में संलग्न रहे होंगे।

जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad)

जयशंकर प्रसाद जन्म : 30 जनवरी 1890 को वाराणसी में । प्रारम्भिक शिक्षा आठवीं तक किन्तु घर पर संस्कृत, अंग्रेजी, पालि, प्राकृत भाषाओं का अध्ययन। इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पु

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