सफ़र सियाही का - दीपक नगाइच 'रोशन' जी शाइरी के पारम्परिक मिज़ाज और ठाठ से तो परिचित हैं ही उसके विद्रोही तेवर तथा बदलते सरोकारों को भी सहजता से स्वीकार करते हैं। पिछले दशकों में जिन कुछ ग़ज़लकारों ने देश भर के नवोदित ग़ज़लकारों को प्रशिक्षित करने का सतत श्रम किया है उनमें रोशन जी वह नाम हैं जिन्होंने यह पुण्य कार्य बग़ैर शोर-शराबे के किया है। उनकी ग़ज़लों में वे तमाम ख़ूबियाँ हैं जो एक उस्ताद शाइर के कलाम में होती हैं। तीस वर्षों की निरन्तर काव्य साधना के जादुई प्रभाव और आलोक को इस संग्रह में महसूस किया जा सकता है। ग़ज़ल की तमाम बारीकियों के सटीक उदाहरण इस संग्रह में जगह-जगह मिलते हैं। एक सदानीरा नदी के झरने के समान उनकी एक-एक पंक्ति प्रवाहमयी और संगीत की लय से परिपूर्ण है। आपके अशआर में गेयता का तत्व भरपूर है। रोशन जी अपने अशआर में पारम्परिक और नवागत प्रतीकों के प्रयोग से मनुष्य और उसके आसपास को अनोखे कोण से देखकर ऐसी सहजता से व्यक्त करते हैं। कि उनके हुनर पर दाद दिया बग़ैर रहा जाता। रोशन जी के सामान्य से दिखने वाले शेर की व्यंजना में मनुष्य, समाज, प्रकृति और उनकी सृष्टि के विभिन्न आयाम देखे जा सकते हैं। यह पाठक पर है कि वह किस मानसिकता से शे'र के नज़दीक पहुँचता है। रोशन जी के यहाँ आशा और निराशा दो अलग-अलग स्थितियाँ नहीं हैं, दोनों में मस्ती का आलम है। वे उदासी का वातावरण निर्मित करते हुए भी एक ख़ुशी का दीप जलाते हुए प्रतीत होते हैं और हार कर जीत का उत्सव मनाते भी। वे व्यक्तिगत जीवन में भी ऐसे ही हैं। आपकी शाइरी में परिपक्वता और गाम्भीर्य भी उल्लेखनीय है। भाषा के प्रति बिना किसी पूर्वाग्रह के आपने जनमानस पर स्थायी छाप छोड़ने वाले अशआर कहे हैं। रोशन जी का यह संग्रह वर्तमान ग़ज़ल साहित्य में महत्वपूर्ण ही नहीं वरन् एक निधि के समान है और समकालीन ग़ज़ल के प्रशंसक तथा आलोचक इस संग्रह की महत्ता को स्वीकार करेंगे। मैं रोशन जी को इस शानदार संग्रह के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित करता हूँ और आशा करता हूँ कि सभी पाठकों को यह संग्रह संग्रहणीय प्रतीत होगा।—विजय कुमार स्वर्णकार
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