प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था - भारत की प्राचीन अर्थव्यस्था बहुत सुविचारित और सुसंचालित रही है। इसके प्रमाण हमें पुराने अभिलेखो में मिलते हैं। इनके माध्यम से हम अतीत की समृद्ध विरासत से साक्षात्कार करते हैं। प्रखर युवा शोधकर्ता डॉ. कमल के. मिश्र ने इन अभिलेखों का ऐतिहासिक स्त्रोत के रूप में उपयोग किया है जो वैज्ञानिक अध्ययन की एक प्रामाणिक प्रणाली है। प्रस्तुत ग्रन्थ में भारत के विभिन्न भागों से प्राप्त आठवीं शती तक के 447 अभिलेखों पर आधारित तत्कालीन अर्थव्यवस्था के अनेक पक्षों का अध्ययन किया गया है, जिनमें भूमि-प्रबन्धन, भू-माप की इकाई, कृषि व सिंचाई प्रबन्धन, वाणिज्य व्यापार तथा राजस्व प्रबन्धन प्रमुख हैं। इस समयावधि में भारतवर्ष में क्रमशः सातवाहन, चेदि, शक, कुषाण, गुप्त, वाकाटक, मैत्रक, औलिकर, मौखिरी, पाल, पल्लव, चालुक्य, राष्ट्रकूट आदि राजवंशों के शासन के प्रमाण मिलते हैं। इन शासनों में जैसी अर्थव्यवस्था पुष्पित-पल्लवित होती रही, उनका अध्ययन और विश्लेषण सम्बद्ध अभिलेखों तथा अन्य समकालीन सामग्रियों से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर किया गया है। इन अभिलेखों की भाषा प्रायः पालि, प्राकृत एवं संस्कृत परिलक्षित होती है, हालाँकि ये सभी अभिलेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। डॉ. मिश्र ने भारतीय और पाश्चात्य दोनों ही दृष्टियों से प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था का वस्तुपरक मूल्यांकन किया है, जो वास्तव में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। विश्वास है कि भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्येताओं के लिए यह ग्रन्थ विशेष उपयोगी होगा।
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