अच्छे विचारों का अकाल - अनुपम मिश्र हमारे समय के सर्वस्पर्शी गाँधीवादी चिन्तक और ऐसे गम्भीर पर्यावरणविद् हैं जिन्होंने प्रकृति के माध्यम से सृष्टि के उन रूपों को आत्मसात कर व्यवहारिक शिक्षा का पाठ निर्मित किया जो मनुष्यता के पुनर्वास के लिए अपरिहार्य है। उनके चिन्तन की तदाकारिता में जल, जंगल और ज़मीन के महत्त्व और उपादेयता के अद्वितीय पाठ हैं। भारतीय परम्परा, आध्यात्म और दर्शन की आधारभूमि पर उनकी सृष्टि और मनुष्य की पक्षधरता के आख्यान बेजोड़ हैं। उनकी वैज्ञानिकता किसान जीवन के व्यवहारिक जीवन से जनमी है, जो देशज है और उन प्रायोजित लाभ-लोभ में डूबे प्रकृति विरोध विज्ञान का निषेध करती है जो धरती की उर्वरा शक्ति का विनाश करती है। पर्यावरण सम्बन्धी उनके विचारों में उर्ध्वमुखी आलोक का सकारात्मक मार्ग है, जिस पर चलकर भारतीय शास्त्रीय-ज्ञान शाखाओं का समावेशी चरित्र बनता है जिसमें जैव-विविधता की रक्षा का संकल्प और नैसर्गिक सन्तुलन का दीप्त ज्ञान-विज्ञान है। अच्छे विचारों के अकाल ने हमारे वर्तमान को लाभ के समीकरणों में सृष्टि को अनदेखी के रास्ते पर लाकर छोड़ दिया है जहाँ प्रकृति और मनुष्यता बिना सोच-विचार के विनाश की ओर उन्मुख हैं। ऐसे दौर में अनुपम मिश्र के प्रस्तुत व्याख्यान लोक चेतावनी के शिल्प में पुनर्जागरण के सन्देश की तरह हैं। उनके सन्देशों में भक्त कवियों की सोद्देश्य पुकारों की अनुगूँजें हैं जो जागरण के शिल्प में उज्ज्वल ज्ञान की परम्परा में जन-जन का परिवर्तन और बेहतर दुनिया के निर्माण में आह्वान करती हैं। सृष्टि और मानवता की पक्षधरता में, अनुपम मिश्र अकेले भासमान उदाहरण की तरह हैं।—लीलाधर मंडलोई
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