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Urdu Ki Ishqiya Shayari

Paperback
Hindi
9789350726440
4th
2014
88
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₹150.00

फ़िराक़ गोरखपुरी - उर्दू की इश्क़िया शायरी - ‘फ़िराक़' बाद को मुमकिनहै यह भी हो न सके।अभी तो हँस भी ले, कुछ रोभी ले, वो आएँ न आएँ।।

इन्तज़ार की घड़ियाँ हैं। अभी माशूक़ के आने का वक़्त है। आशा और निराशा में खींचातानी हो रही है। अभी तो यह सम्भव है कि ख़ुश हो लें या उदास हो लें, कुछ हँस लें, कुछ रो लें। लेकिन जब यह वक़्त गुज़र जायेगा तो उस समय माशूक आ चुका होगा या यह निश्चय हो चुका होगा कि वह नहीं आयेगा। उस समय कहा नहीं जा सकता कि हँसना या रोना सम्भव होगा या नहीं। अगर माशूक़ आ चुका है तो भी प्रेमी की वह दशा हो सकती है जो न उसे रोने दे न हँसने दे; और अग़र न आना तय हो चुका है तो भी यही हालत हो सकती है यानी साँस रुककर रह जाए, जीवन की गति अचानक ठहर जाये। उस समय रोना-हँसना कैसा! इसलिए ऐ प्रेमी, ये दोनों लीलाएँ इन्तज़ार की घड़ियों में, दुविधा की दशा में, हो लेने दे।अज़ीज़ लखनवी का यह शेर देखें :

दिल का छाला फूटा होता।काश ये तारा टूटा होता।।शीश-ए-दिल को यों न उठाओ।देखो हाथ से छूटा होता।।

गोविन्द प्रसाद (Govind Prasad)

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चन्द्रशेखर (Chandrashekhar)

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फ़िराक़ गोरखपुरी (Firaq Gorakhpuri)

फ़िराक़ गोरखपुरी (1896 - 1982) 1896 : अगस्त 28, गोरखपुर में जन्म।1913 : स्कूल लीविंग परीक्षा में उत्तीर्ण।1915 : एफ़.ए.। म्योर सेंट्रल कालेज, इलाहाबाद से।1917 : जून 18 : पिता मुंशी गोरखप्रसाद 'इबरत' का देहान्त। बी.ए. मे

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