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रुक्मिणी- हरण -
शंकरदेव असमीया नाट्य-साहित्य के जनक हैं। असमीया नाट्य साहित्य वैष्णव आन्दोलन की परिणति है। शंकरपूर्व युग में नाट के लिखित रूप के होने का तथ्य नहीं मिलता है। पर नाटकीय विशेषताओं से युक्त 'ओजापालि' और 'पुतला नाच' (गुड़िया नृत्य) आदि का प्रचलन था। आपने संस्कृत नाट और प्राचीन असमीया ओजापालि अनुष्ठान के आधार पर एक अंकयुक्त छह नाटों की रचना की। पर इन नाटों पर दक्षिण भारत के कर्नाटक के लोक-नृत्यानुष्ठान यक्षगान का प्रभाव होने की सम्भावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। शंकरदेव तीर्थभ्रमण करते हुए उड़ीसा में लम्बे समय तक रहे थे। उड़ीसा की संस्कृति पर दक्षिण भारत की संस्कृति का गहरा प्रभाव है। उड़ीसा में यक्षगान जैसे नृत्यानुष्ठान से शंकरदेव परिचित हुए थे। उनसे अपने नाट की रचना करने में उन्हें प्रेरणा मिली थी। एक अंक के होने के कारण इन्हें 'अंकीया नाट' भी कहते हैं। शंकरदेव ने इन नाटों को अंकीया नाट नहीं कहा है। आपने इन्हें नाट, नाटक, यात्रा और नृत्य ही कहा है। शंकरदेव और माधवदेव के नाटों को विशेष मर्यादा प्रदान करते हुए और दूसरे नाटों से उनका भेद दर्शाते हुए उनके नाटों को 'अंकीया नाट' कहा गया है। वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए शंकरदेव ने नाटों की रचना की थी। ये नाट सत्र, नामघर आदि में अभिनीत हुए थे। धर्म के प्रचार में इन नाटों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आपके द्वारा प्रणीत नाटों के नाम हैं-पत्नीप्रसाद'. 'कालिदमन', 'केलिगोपाल', 'रुक्मिणी-हरण', 'पारिजात - हरण' और 'रामबिजय' । इन नाटों की रचना करने से पहले शंकरदेव द्वारा 'चिह्न यात्रा' नाम से एक नाट लिखा गया था और इस नाट का अभिनय भी हुआ था।
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