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चिरकाल से चली आ रही परम्पराओं, रीति-रिवाजों के विरुद्ध यदि कोई आचरण करता है या आवाज़ उठाने का साहस करता है तो अहं खंडित होने के कारण समाज उसे स्वीकार नहीं करता और बदले में मिलता है तिरस्कार, उपेक्षा, वेदना। विजय तेंडुलकर द्वारा लिखित यह नाटक ‘मीता’ मानवीय सम्बन्धों के विवादास्पद आयामों पर आधारित है। एक वयस्क युवती का अपनी स्त्री मित्र के प्रति आकर्षण व भावनाओं का विश्लेषण इस नाटक के माध्यम से हुआ है। मीता स्त्री-पुरुषों के सम्बन्ध को अस्वीकार कर स्त्री मित्र के सम्बन्धों को स्वीकार करके कुण्ठित, नकारात्मक जीवन जीती है, यही उसकी त्रासद नियति है। तेंडुलकर ने इस नाटक को ममता और कोमलता के छुअन के साथ लिखा है।
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