Karmyog

Paperback
Hindi
9788170553793
5th
2021
80
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भारतीय दर्शन में कर्म वेदान्त की एक धारा है। कर्म का क्षेत्र व्यापक है। कहा गया है- 'योगः कर्मसु कौशलम्' अर्थात् कर्म की कुशलता ही योग है। सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ जब कर्म के अर्थों और क्षेत्रों का विस्तार हुआ, कर्म की शास्त्रीय व्याख्या अपूर्ण और अपर्याप्त लगने लगी। भारतीय वेदान्त में शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित कर्मयोग की अवधारणा और स्वामी विवेकानन्द द्वारा कर्म की व्याख्या में पर्याप्त अन्तर है। स्वामी विवेकानन्द ने कर्म को देशकाल की आवश्यकताओं के अनुसार व्याख्यायित किया है। कर्म से सम्बन्धित उनकी व्याख्याएँ और मान्यताएँ अधिक व्यावहारिक हैं। वैज्ञानिक विकास और प्रौद्योगिकी के इस युग में कर्म की नित्य नयी सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए कर्म को उसके पारम्परिक अर्थों से अलग लोकसम्मत अर्थों में ग्रहण किया जाना चाहिए। कर्मयोग के बारे में स्वामी विवेकानन्द के दार्शनिक चिन्तन का यही प्रस्थानबिन्दु है ।


कर्मयोग पुस्तक में स्वामी विवेकानन्द द्वारा कर्म पर दिये आठ व्याख्यानों के अनुवाद हैं। भारतीय संस्कृति और दर्शन के प्रख्यात मनीषी डॉ. रामविलास शर्मा द्वारा किये गये ये अनुवाद आज के सामाजिक सन्दर्भों में प्रासंगिक और पठनीय हैं।

रामविलास शर्मा (Ramvilas Sharma)

डॉ. रामविलास शर्मा (10 अक्टूबर, 1912- 30 मई, २०००) आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार, विचारक एवं कवि थे। व्यवसाय से अंग्रेजी के प्रोफेसर, दिल से हिंदी के प्रकांड पंडित और महान विचार

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स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand)

स्वामी विवेकानन्द (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ – मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में

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