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Main Behar Mein Hoon

Paperback
Hindi
9789362876935
1st
2024
140
If You are Pathak Manch Member ?

मैं बहर में हूँ - पढ़ने-लिखने का शौक़ मुझे बचपन से ही रहा है। संयोग से मेरा जन्मदिन उसी दिन है जिस दिन मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म हुआ था। फ़ितरत कहूँ या सोहबत का असर, कॉलेज के दिनों से मुझे टीवी पर कवि सम्मेलन और मुशायरे देखना और मौक़ा मिलने पर ऐसे आयोजनों में जाना मुझे हमेशा ही अच्छा लगा। जगजीत सिंह जी की ग़ज़लों को सुनना और टीवी पर देखा हुआ मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल, मेरे सिर पर ग़ज़लों का भूत ऐसा चढ़ा कि अब चाहकर भी मैं इनसे दूर नहीं हो सकता।
मुझे यह याद नहीं है कि मैंने पहला शेर कौन-सा लिखा और मेरी पहली ग़ज़ल कौन-सी है। शुरुआती दौर में जो कुछ कच्चा-पक्का लिखा उन पन्नों को फाड़ने का साहस अभी तक नहीं कर पाया हूँ। कोविड ने मेरी अतृप्त इच्छाओं को फिर से जगा दिया जो मैं लगभग भूल चुका था। यह दौर जहाँ पूरी दुनिया के लिए कई नयी चुनौतियाँ खड़ी कर रहा था, वहीं पर यह न जाने कितनी अनगिनत सम्भावनाएँ सँजोये था। जैसे न जाने कितने लोगों ने इस दौर में अपने आपको खंगाला और सागर मन्थन की तरह ना जाने अन्दर से क्या-क्या ढूँढ़ निकाला था। यह मेरे लेखन के पुनर्जीवन का अवसर था और मैंने इसका पूरी तरह फ़ायदा उठाया भी है। लिखना अब मेरे लिए शौक से बढ़कर ज़रूरत बन गया है और कुछ सालों बाद मिलने वाले ख़ाली समय के सदुपयोग का इससे बेहतर साधन अभी तक तो मेरी निगाह में नहीं है ।
कोविड के दौर की मुश्किलें तो पूरी दुनिया के लिए थीं पर इसके बाद की मेरी मुश्किलों का दौर मेरे अपने अज्ञान का परिणाम था। आज जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मुझे अपने आप पर हँसी आती है। यह जानते हुए भी कि उर्दू मेरी मातृभाषा और तालीम का हिस्सा कभी नहीं रही थी, अपनी पहली किताब 'हफ़्ते दर हफ़्ते' के प्रकाशन का जोखिम उठा लिया।
ज़िन्दगी कोई साँप-सीढ़ी का खेल नहीं है जिसमें गिरना और चढ़ना भाग्य के भरोसे हो। अपनी कामयाबी और नाकामी के लिए इन्सान पूरी तरह से खुद ज़िम्मेदार होता है और जो लोग भाग्य को दोष देते हैं वो खुद से बचना चाहते हैं। किसी इन्सान के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पहचान तब होती है जब वो मुश्किल समय से गुज़र रहा होता है। जब मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ, तब मेरे पास दो रास्ते थे या तो जैसा चल रहा है वैसा ही चलने दूँ या फिर अपनी ग़लतियों को सुधारूँ। सो अपने आपको सुधारने की कोशिश (जो अभी जारी है और हमेशा जारी रहेगी) आपके सामने रखकर कहता हूँ :
ठुकराओ अब कि वाह करो मैं
बहर में हूँ

सुनील अटोलिया 'कालू' (Sunil Atolia 'Kalu')

सुनील अटोलिया 'कालू' शिक्षा : एम. बी. ए., एम.कॉम. ।सम्प्रति : हिन्दुस्तान पेट्रोलियम में मुख्य प्रबन्धक ।सृजन : हिन्दी लेखक (कविता, मुक्तक, ग़ज़ल, नज़्म एवं दोहे) काव्य-संग्रह : हफ़्ते-दर- हफ़्ते, मैं

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