Uttar Pradesh ka Swatantrata Sangram : Mau

Saurabh Singh Author
Hardbound
Hindi
9788190538657
1st
2023
120
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स्वाधीनता के प्रथम संग्राम 1857 की क्रांति में इस क्षेत्र के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 1857 में इस अंचल के जिन दो सपूतों को सरेआम नीम के पेड़ पर लटका कर फाँसी की सज़ा दी गयी, वे थे नवसृजित मधुबन तहसील के ग्राम दुबारी के निवासी हरख सिंह एवं हुलास सिंह। चंदेल क्षत्रियों के इस गाँव में स्वाधीनता के अप्रतिम सेनानी बाबू कुँवर सिंह का आगमन हुआ था। स्थानीय लोगों ने बढ़-चढ़ कर उनका साथ दिया जिसका परिणाम भी उन्हें भुगतना पड़ा। चंदेलों की सात कोस की ज़मींदारी छीनकर उस अंग्रेज़ महिला को दे दी गयी जिसका पति इस आंदोलन में मारा गया था। गाँव में कुँवर सिंह का साथ देने के आरोप में हरख, हुलास, एवं बिहारी सिंह को बंदी बना लिया गया तथा इन्हें सरेआम फाँसी देने का हुक्म हुआ। बिहारी सिंह तो चकमा देकर भाग निकले लेकिन अन्य दो व्यक्तियों को ग्राम दुबारी के बाग में नीम के पेड़ पर लटका कर फाँसी दे दी गयी ।

इस घटना की समूचे क्षेत्र में प्रतिक्रिया हुई। दोहरीघाट, परदहा, अमिला, सूरजपुर, आदि गाँवों के लोगों ने मालगुजारी देना बंद कर दिया। इसी दौरान स्वाधीनता की लड़ाई को संगठित स्वरुप देने का प्रयास किया जनपद के परदहा ब्लाक के ठाकुर जालिम सिंह ने। उन्होंने पृथ्वीपाल सिंह, राजा बेनी प्रसाद, इस्सदत्त, मुहम्मद जहाँ, परगट सिंह, आदि के साथ घूम-घूम कर स्वाधीनता की अलख जगाई। दुबारी के फाँसी कांड के बाद 1 अप्रैल 1857 को दोहरीघाट में सरयू तट पर स्थित गौरी शंकर घाट पर क्रांति की योजना बना रहे जिन रणबांकुरों पर अंग्रेज़ों ने सामूहिक रूप से गोली चलायी थी उसमे जालिम सिंह भी शामिल थे और वे वहाँ से जीवित बच निकलने में कामयाब हुए। बाद में 3 जून 1857 को अपने सहयोगी सेनानियों के साथ जालिम सिंह ने आजमगढ़ कलेक्टरी कचहरी पर क़ब्ज़ा कर उसे अंग्रेज़ों से मुक्त करा दिया। 22 दिन तक आजमगढ़ स्वतंत्र रहा।

डॉ. लवकुश दिवेदी (Dr. Lavkush Dwivedi)

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सौरभ सिंह (Saurabh Singh)

सौरभ सिंह जन्म : 25 फ़रवरी, 1994 को मऊ के रसड़ी नामक ग्राम में हुआ । इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव स्थित प्राइमरी स्कूल में हुई जहाँ इनके पिता वर्तमान में प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। इंटर

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