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राजेश तैलंग, के बड़े भाई, सुधीर तैलंग, ऊँचे दर्जे के आर्टिस्ट थे और एक नामवर कार्टूनिस्ट! मैं उनका प्रशंसक था। राजेश तैलंग भी शौहरत के हाईवे के राहगीर हैं। ख़ूबसूरत कविताएँ लुटाते आगे बढ़ रहे हैं। ये हाईवे शायद चाँद पर पहुँच कर रुके ! “डीयर राजेश, वहीं चाय पर मिलेंगे।' गुडलक ! -गुलज़ार / राजेश ने कविताओं में जो बातें कही हैं-भोली-भाली, मधुर, सच्ची, लाड़ से मुस्कुराती, बलखाती, मचल-मचल पड़ती, कभी नटखट तो कभी आमन्त्रण भरी या कुल मिलाकर कहें तो एक हक़ीक़त झीनी-झीनी। इनमें संकेत भी हैं और मनुहार भी। बातों को आसानी से कह देना बहुत मुश्किल होता है जो आपके पास पहुँचती हैं, दिल को छू जाती हैं और फिर वहीं ठहर जाती हैं अपनी रसभरी नरम सुगन्ध के साथ। -पीयूष मिश्रा
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