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Maskhare Kabhi Nahin Rote

Paperback
Hindi
9789357757911
1st
2024
136
If You are Pathak Manch Member ?

महेन्द्र ने पिछले तीन दिन से रोटी नहीं खायी। वह शायद बेहोश...। गिरधारी भाई की उँगलियों से माइक शक्ति छिन गयी और उनका ऐंद्रजालिक संसार खण्ड-खण्ड हो गया। उन्होंने साधारण लाइट जला दी। लड़के के पीछे खड़ी छोटी को याद ही नहीं रहा कि वह दाढ़ीवाले की पली है। महेन्द्र का सिर अपनी गोद में रखकर उसने दाढ़ीवाले को गाली दी, 'तुम कमीने हो। राक्षस हो। इतना डाँटते रहे महेन्द्र को। तुम करवाओगे एक्टिंग लोगों को भूखे रख कर।' और वह ऐसे रोने लगी जैसे सचमुच उसका भाई मर गया हो।

दीवार के साथ खड़ी लड़की अपने पागल भाइयों के पास गयी और लगातार बोलने लगी- 'गाँ। गाँ। गाँ।' भाई आतंकित हो गये। क्योंकि पहली बार बहन की अशब्द आवाज़ में उन्हें अर्थ सुनाई दिया। अबोले शब्द का अर्थ। गूँगी ने लगातार दीवार पर हाथ पटकने शुरू कर दिये और वह गूँगी के साथ-साथ पागल भी हो गयी। दोस्त महेन्द्र के मुँह पर पानी के छींटे मार रहा है। पागल भाइयों ने रोटियों भरा थाल दीवार पर रखा और अपनी-अपनी रोटियों के ढेर को प्लाईवुड के बने मंच पर फेंक दिया। महेन्द्र के आसपास मंच पर जब रोटियाँ गिरीं तो उसने आँखें खोलीं। वह बिल्कुल हैरान हुआ और बैठ गया । पागल बोला, 'खा। खा । खा।' गूँगी ने उठ बैठे महेन्द्र को देखा और ताली बजाकर कहा- 'गाँ-गाँ-गाँ' । पागल भाइयों ने भी ताली बजायी और जो गूँगी कहना चाहती थी उसे शब्दों में कहा- 'नहीं मरा। नहीं मरा।' महेन्द्र से फिर कहा- 'खा । खा । खा ।' कपिल देव बने मसख़रे ने खुली छत पर बैठकर आउट होने से पहले रोना शुरू कर दिया। दूसरा मसख़रा पहले हैरान हुआ क्योंकि इसे तो मार्शल की आख़िरी गेंद पर आउट होना है तथा रोना भी नहीं। मसख़रा-धर्म है हँसना। और यह भूल गया अपना धर्म। वह मशीन-मानव की तरह चलकर छत पर बैठे मसखरे के पास पहुँचा। बैठा। और दोनों मसखरे हाथों से अपना-अपना चेहरा दाँव पर लगाकर रोना शुरू हो गये।

-इसी पुस्तक से

स्वदेश दीपक (Swadesh Deepak)

स्वदेश दीपक हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित और प्रशंसित लेखक व नाटककार स्वदेश दीपक का जन्म रावलपिण्डी में 6 अगस्त, 1942 को हुआ। अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. करने के बाद उन्होंने लम्बे समय तक गाँधी म

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