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Kal Mrig Ki Peeth Par

Paperback
Hindi
9789357759755
1st
2024
128
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काल मृग की पीठ पर प्रख्यात कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव का नया संग्रह है। यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते कवि ने एक लम्बी काव्य-यात्रा पूरी की है। इस संग्रह के शीर्षक के बहाने हिन्दी कविता और समाज को एक नया दृश्य-बिम्ब मिला है। जितेन्द्र की कविताओं में विन्यस्त सहजता काल और समय के साथ कवि के यथार्थ रिश्तों के कारण सम्भव हुई है। यह कवि मनुष्य जीवन की ऐहिकता को पूरे सम्मान के साथ समझने की कोशिश करता है। वह कविता को किसी सिद्धान्त की प्रयोगशाला नहीं बनाता क्योंकि वह जानता है कि कविता जीवन की गहरी सामाजिकता से निःसृत होती है। यही कारण है कि जितेन्द्र की कविताएँ सीधे विवेक की आत्मा और आत्मा के विवेक को संवेदित करती हैं।

जितेन्द्र की कविताओं में यह देखना सुखद है कि कविताओं में उनका प्रयास दिखने में जितना सरल है, अपनी अभिव्यक्ति की बारीकियों में उतना ही सघन, तलस्पर्शी और राजनीतिक भी है। उनकी कविताएँ भारतीय जन-समाज की सगुणात्मक सच्चाइयों का विश्वसनीय रूपक हैं। ये कविताएँ हमारी संवेदना को चाक्षुष भी बनाती हैं। यह भी एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि ये कविताएँ कथ्य को महज़ एक भाषिक प्रतीति में बदल डालने की कोशिशों का सचेत प्रत्याख्यान हैं।

इस संग्रह की कविताएँ उजास-भरी आँखों की कविताएँ हैं। इन कविताओं में हर प्रकार के अँधेरे की सूक्ष्म पहचान और उसकी मुखालफ़त है। ये कविताएँ अँधेरे का विलाप नहीं करतीं।

ये राजनीतिक विचारों को मनुष्य-मन की स्वाभाविक समझ में शामिल होते देखना चाहती हैं। इन कविताओं में अनाम कुल में जन्मे साधारण-सरल-विरल जन, उनकी विवशताएँ और उनके सुख-दुःख पूरी जगह पाते हैं। कह सकते हैं कि ये कविताएँ भारतीयता के वास्तविक सन्धान की कविताएँ हैं। इन कविताओं में नैतिकता, मानवीय गरिमा और ज़िम्मेदारी का मनुष्यधर्मी रसायन है। इस संग्रह में शामिल लम्बी कविता 'कोई सीधी रेखा नहीं है जीवन' कोरोना केन्द्रित हिन्दी कविताओं में सबसे विश्वसनीय कविता है। यह कोरोना की विभीषिका को झेलते हुए लिखी गयी सम्भवतः अकेली ऐसी कविता है जिसमें पूरा समय ध्वनित होता है। यह अकारण नहीं है कि जितेन्द्र उत्तरशती की हिन्दी कविता के अत्यन्त सम्मानित और स्वीकृत कवि हैं। उनकी कविताओं की व्यापक रेंज की तरह उनके पाठकों की रेंज भी बड़ी है।

ममता कालिया ने उनकी बेटी और स्त्री विषयक कविताओं के सन्दर्भ में लिखा है कि उनसे नया विमर्श जन्म लेता है। इस संग्रह में संकलित कविताएँ भी इसका प्रमाण हैं। चन्द्रकला त्रिपाठी ने बिल्कुल ठीक लिखा है- जितेन्द्र के यहाँ एक मुखातिब और संलग्न संसार है जिसके भीतर गहरा, व्यापक और गतिशील जीवन है। ज़िम्मेदारी से भरी मनुष्यता के रंग हैं। देश है, बाज़ार की मनुष्यता को उलीच लेने वाली कपट चाल का खुल जाना है और 'पुतलियाँ पृथ्वी का सबसे पुराना एलबम हैं' जैसा मौलिक और ज़िन्दा वाक्य है जिसकी समाई बहुत बड़ी है।

जितेन्द्र श्रीवास्तव (Jitendra Shrivastav)

जितेन्द्र श्रीवास्तवजन्म : उत्तर प्रदेश के देवरिया में।प्रकाशन : इन दिनों हालचाल, अनभै कथा, असुन्दर सुन्दर (कविता); भारतीय समाज की समस्याएँ और प्रेमचन्द, भारतीय राष्ट्रवाद और प्रेमचन्द, शब्द

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