मनुष्य का दूसरा जीवन होता है या नहीं यह तो मैं नहीं जानता किंतु इतना निश्चित है कि कविता शब्द का दूसरा जीवन है जो कवि के विजन और अनुभव से उसे मिलता है। कविता लिख लेने के बाद जब मैं उसे पढ़ता हूँ तो मुझे लगता है कि मैं अपने आप से बात कर रहा हूँ, अपने आसपास की दुनिया से बात कर रहा हूँ। मैं अकेला नहीं हूँ मेरे अनगिनत साथी मेरे साथ हैं। मैं अपने समकालीन कवियों की कविताओं के साथ अपने कविताओं को बार-बार पढ़ता हूँ। मुझे लगता है, स्मृति को जिंदा रखने का सबसे खूबसूरत और जीवन्त माध्यम यही है। यही है जो हमारे सौंदर्यबोध को जंग लगने से बचाता है। यही है जो हमारी संवेदनाओं का परिष्कार करता है और मनुष्य को बनाता है। यह लिखते हुए मुझे अपने मित्र कवि लीलाधर जगूड़ी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं कि कविता अपने समय की समझ से पैदा होती है। मनुष्य की समझ को ही मैं समय की समझ कह रहा हूँ। क्योंकि समय का भी दिमाग मनुष्य में ही काम करता है। सारी नश्वरताओं के बीच सौंदर्य बहुत टिकाऊ चीज है। इस तरह हर समय की कविता अपनी समझ, अपना सौंदर्य और बोध स्वयं रचती है। पिछले पचास वर्षों की हिन्दी-कविता में किसी बड़े होते हुए छोटे बच्चे की हड्डियों जैसी कमजोरी और शक्ति दोनों हैं। वर्तमान हिंदी कविता में अभी बहुत से अज्ञात अनुभव क्षेत्रों को शामिल होना है। अनुभब के नये इलाके जुड़ने हैं। पिछले दशकों में एकरूपता की अजब ऊब के बावजूद कुछ कवि उसे तोड़ने दिखते हैं। ऐसे ही कवियों की कविताओं से समकालीन कविता का बीजगणित तैयार होता है जिसका एक छोटा सा आरंभिक अंश इस किताब में प्रस्तुत है। यह आधी-अधूरी तस्वीर है। लगभग मुकम्मल तस्वीर तो तब बनेगी जब केदारनाथ सिंह, मंगलेश डबराल, उदय प्रकाश, राजेश जोशी, असद जैदी, भगवत रावत, नरेंद्र जैन, स्वप्निल श्रीवास्तव, एकांत श्रीवास्तव, देवीप्रसाद मिश्र, बद्रीनारायण, निलय उपाध्याय, बोधिसत्व, श्रीरंग आदि कवियों की कविताओं पर भी विचार किया जाएगा। यह समकालीन कविता के बीजगणित का अगला सोपान होगा
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