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‘डबल लाइफ' की पटकथा प्रकाशित करने से पूर्व 'हाईवे 39' की पटकथा प्रकाशित की गयी थी। 'स्लाइस ऑफ लाइफ' और 'कार्पे डीएम' जैसी यूटोपियन अवधारणाओं के बीच तीसरी दुनिया की बदसूरत सच्चाइयों को हमारे सामने रखते उदय प्रकाश पटकथा लेखन में भी 'मास्टर' हैं। 'जादुई यथार्थवाद' के जादूगर उदय जी की यह पटकथा भूमण्डलीकरण, ध्रुवीकरण, भाषाओं के बदलते चरित्र और चित्रण के द्वन्द्व के बीच फँसे किरदारों का लेखा-जोखा है जिनसे हम और आप शायद रोज़ मिलते हैं, पर पहचानते नहीं। उन्हें गहराई से जानने के लिए एक ऐसी पटकथा की आवश्यकता पड़ती है जो अगले कुछ पन्नों में ख़ुद को प्रत्यक्ष कर रही है। किताब के अन्तिम पन्ने तक पहुँचते-पहुँचते हम देखेंगे कि आम आदमी और औरत आख़िर इतने आम भी नहीं कि उनका जीवन गुठलियों के भाव सस्ता मान लिया जाये। आख़िर कब हम सामूहिक- सामाजिक रूप से यह समझेंगे और मानेंगे कि एक आम गुठली ही उन तमाम फलों का स्रोत है जिसके दम पर दुनिया की कोई भी मण्डी सजती है ? ख़ैर, नयी सदी के नये पहलुओं को हम सभी से साझा करने के लिए उदय जी को धन्यवाद। गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता 'पूँजीवादी समाज के प्रति’ की कुछ पंक्तियों से अपनी बात को अल्पविराम दे रही हूँ।
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