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Renu Ki Aanchalik Kahaniyan

Paperback
Hindi
9789350727379
4th
2024
148
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हिन्दी साहित्य में श्री फणीश्वरनाथ रेणु का प्रवेश सर्वप्रथम 1945 में साप्ताहिक विश्वमित्र (कलकत्ता) में प्रकाशित ‘बटबाबा’ शीर्षक कहानी से हुआ। यहीं से शुरू हुआ रेणु का हिन्दी साहित्य जगत में खुद को स्थापित करने का संघर्ष। बटबाबा छपने के बाद रेणु का हौसला बुलन्द हो गया और फिर एक-एक कर कई कहानियाँ उन्होंने लिख डालीं। इनमें कई कहानियाँ तो काफ़ी लोकप्रिय साबित हुईं। 1954 में उनका पहला उपन्यास ‘मैला आँचल' प्रकाशित हुआ । इस उपन्यास ने पूरे हिन्दी साहित्य जगत एक में सनसनी पैदा कर दी। हर किसी की जुबान पर सिर्फ़ रेणु का ही नाम था। इसके चर्चा में होने का कारण वह भाषा थी जो तत्कालीन हिन्दी साहित्य में दर्ज नहीं हुई थी। इस विशेष भाषा जो कि ग्राम अंचलों में बोली जाती थी - को रेणु ने बड़े ही ख़ूबसूरत ढंग एवं सजीवता के साथ 'मैला आँचल' में प्रस्तुत किया है। भारतीय हिन्दी कथा संसार में यह पहला उपन्यास था जिसे आंचलिक उपन्यास होने का गौरव प्राप्त हुआ, और रेणु थे पहले साहित्यकार । देखते-ही-देखते रेणु एक महान शिल्पकार के रूप में हिन्दी साहित्य में विराजमान हो गये। इसके बाद रेणु का दूसरा उपन्यास 'परती परिकथा' 1956 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास भी काफ़ी लोकप्रिय सिद्ध हुआ। इसके साथ रेणु ने कई आंचलिक कहानियाँ भी लिखीं, जिनमें कि प्रमुख रूप से तीसरी कसम अर्थात् मारे गये गुलफ़ाम, दीर्घतपा, रसप्रिया, तीर्थोदक, एक आदिम रात्रि की महक, तीन बिन्दियाँ, अच्छे आदमी, ठेस, भित्ति-चित्र की मयूरी एवं संवदिया हैं।

रेणु के कथा-साहित्य पर कुछ भी लिखना एक युग को जीने जैसा या फिर अथाह समुद्र में गोता लगाने जैसा कठिन और ख़तरनाक कार्य है। जैसा कि मेरा मानना है। रेणु के कथा समुद्र में जिसमें कई बहुमूल्य धातुओं के जैसी रचनाएँ बिखरी पड़ी हैं। 'रेणु की आंचलिक कहानियाँ' शीर्षक नाम की इस पुस्तक में सम्पादक ने कोशिश की है उन तमाम बिखरी बहुमूल्य रचनाओं को एकत्र कर एक ख़ूबसूरत गुलदस्ते में सजाने की ।

दक्षिनेश्वर रेणु (Dakshineshwar Renu)

दक्षिनेश्वर रेणु दक्षिणेश्वर रेणु हिन्दी लेखक फणीश्वर नाथ रेनू के पुत्र हैं। दक्षिणेश्वर ने दो पुस्तकें लिखी हैं:रेणु की आँचलिक कहानियाँ- रेणु की आंचलिक कहानियाँ: वाणी प्रकाशन द्वारा प्रक

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