रोज़ एक कहानी -
मंटो की यह विशेषता है कि वह अपनी कहानियों में, अपने निजी दृष्टिकोण और विचारधारा के साथ, दख़लअन्दाज़ी की हद तक पूरे-का-पूरा मौजूद रहता है। अपने पात्रों की ख़ुशियों के साथ, वह उनकी तकलीफ़ और दुख भी सहता है। यही वजह है कि उनकी कहानियों में संस्मरण का हल्का-सा रंग हमेशा झलकता है-क़िस्सागोई का वह स्पर्श, जो किसी बयान को यादगार बनाने के लिए बहुत ज़रूरी है।
लेकिन यह क़िस्सागोई महज़ दिलचस्पी पैदा करने के लिए, सिर्फ़ चन्द गाँठ के पूरे और दिमाग़ के कोरे 'साहित्य प्रेमियों का मनोरंजन करने के लिए नहीं है। क़िस्सागोई का यह अन्दाज़ एक ओर तो आम आदमी को इस बात का अहसास कराता है, कि मंटो उनके साथ है, उनके बीच है, वह सारे दुख-सुख महसूस कर रहा है, जो आम आदमी की नियति है, दूसरी ओर यह भी बताता है कि ये कहानियाँ मंटो ने लिखी हैं कि पाठक यह जानें कि उनकी नियति क्यों ऐसी है, जिससे वे अपनी नियति को बदलने के लिए मुनासिब कार्रवाई कर सकें।
यही वजह है कि मंटो, अपने चारों ओर झूठ, फ़रेब और भ्रष्टाचार से पर्दा उठाकर, समाज के उस हिस्से को पेश करता है, जिसे लोग स्वीकार करने से कतराते हैं, या फिर "ऐसा तो होता ही है' के-से अन्दाज में, एक उदासीन मान्यता देकर, नज़रअन्दाज़ कर देते हैं।
लेकिन व्यक्ति और लेखक-दोनों रूपों में अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाने की ज़िम्मेदारी महसूस करते हुए, मंटो न तो कतरा सकता है और न इस सबको नज़रअन्दाज़ ही कर सकता है। वह इस सारे भ्रष्टाचार के रू-ब-रू होकर, उसकी भर्त्सना करता है। लेकिन वह कोरा सुधारक नहीं है, वरन् एक अत्यन्त भाव-प्रवण, सम्वेदनशील व्यक्ति है, इसलिए वह समाज के इस गर्हित पक्ष रंडियों, भड़वों, दलालों, शराबियों में दबी-छिपी मानवीयता की तलाश करता है। वह समाज के निचले तबके के लोगों की ओर मुड़ता है और उनके 'आहत अनस्तित्व' को छूने के लिए अपने प्राणदायी हाथ बढ़ाता है।
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