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सनातन बाबू का दाम्पत्य

कहानी
Hardbound
Hindi
8126312971
3rd
2013
160
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सनातन बाबू का दाम्पत्य - नयी सदी में उभरे चन्द महत्त्वपूर्ण कथाकारों में एक कुणाल सिंह की यह पहली किताब है। जैसा अमूमन 'पहली' किताबों के साथ होता आया है, 'सनातन बाबू का दाम्पत्य' को कुणाल सिंह के लेखकीय विकास के दस्तावेज़ी रूप में न देखकर नब्बे के बाद पल-छिन बदलते आये यथार्थ के पुनरीक्षण के रूप में देखना चाहिए। वैसे यह भी एक सचाई है कि अपनी पहली कहानी 'आदिग्राम उपाख्यान' से ही कुणाल सिंह आगामी किसी विकास के लिए मुहलत नहीं माँगते। इसका अर्थ यह नहीं कि उनकी कहानियाँ विकास की सम्भावनाओं से खाली अथवा सम्पूर्ण हैं। आशय सिर्फ़ इतना कि यहाँ किसी तरह की शुरुआती अनगढ़ता नहीं दिखती। फक़त सात कहानियों के इस संग्रह से गुज़रते हुए सबसे पहले इस बात पर ध्यान जाता है कि लेखक ने बिना किसी आन्दोलनात्मक तेवर को अख्तियार किये, कहन की सर्वथा एक नयी भंगिमा अर्जित की है। इन कहानियों की भाषा और शैली दूर से ही चमकती है। कुणाल सिंह ने बहुत कम समय में अपनी निजी भाषा, मुहावरा और कथन का एक ख़ास लहज़ा प्राप्त कर लिया है। बग़ैर आंचलिक हुए इन कहानियों में बंगाल और असम का तिलिस्मी भूगोल उजागर हुआ है। संक्षेप में, 'सनातन बाबू का दाम्पत्य' एक नये रचनाकार की एक सर्वथा नयी कृति है, जिसका हिन्दी कथा साहित्य में स्वागत होना चाहिए।

कुणाल सिंह (Kunal Singh)

कुणाल सिंह - 22 फ़रवरी, 1980 को कोलकाता के समीपवर्ती एक गाँव में जन्म। प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता से हिन्दी साहित्य में एम.ए. (प्रथम श्रेणी में प्रथम) के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ल

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