क्रौंचवध - हिन्दी के प्रसिद्ध कवि विजेन्द्र का 'क्रौंचवध' एक मिथकीय काव्य-नाटक है। इसमें क्रौंच-वध की घटना से विह्वल आदिकवि वाल्मीकि के उन्मथित मन का रूपकीय कथानक के विस्तृत फलक पर चित्रांकन है। कथानायक के बहुस्तरीय द्वन्द्व का सम्बन्ध उस समय के बहुस्तरीय समाज से भी है। नाट्य रूपक में क्रौंचवध की घटना अति संक्षिप्त और सूक्ष्म है, प्रमुख पात्र वाल्मीकि के आन्तरिक द्वन्द्व की ही यहाँ प्रमुखता है। भारतीय कविता की रचना प्रक्रिया का प्रथम अंकुरण भी यहाँ है। न केवल वाल्मीकि बल्कि भारद्वाज आदि अन्य पात्र प्राचीन होते हुए भी आज के जीवन्त प्रश्नों को उठाते से लगते हैं। यह सहज रूपान्तरण उनमें बाह्य और आन्तरिक जीवन-लय की टकराहटों से होता है। यही कारण है कि उनमें मानवीय गति, ऊष्मा, क्रिया और चित्त का कम्पन बराबर महसूस किया जा सकता है। रूपात्मक बिम्ब और ऐन्द्रिय छवियाँ यहाँ नाटक के संरचनात्मक शिल्प का जैविक अंग बन गयी हैं। कथ्य, (विज़न) और कल्पना में सेतु के रूप में सूत्रधार की भूमिका प्रमुख है और नाटक में आधुनिकता लाने में सहायक है। विजेन्द्र का यह काव्य-नाटक सहज-सरल भाषा में विन्यस्त होने से साधारण पाठक भी इस काव्य-कृति का भरपूर आनन्द ले सकता है।
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