Jis Tarah Ghulti Hai Kaya

Vazda Khan Author
Hardbound
Hindi
9788126319367
2nd
2010
134
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जिस तरह घुलती है काया - 'जिस तरह घुलती है काया' युवा कवयित्री वाज़दा ख़ान का पहला कविता संग्रह है। पहला कविता संग्रह होने के बावजूद इन कविताओं में छिपी गहराई अत्यन्त उल्लेखनीय है। ज़िन्दगी में आयी तमाम परेशानियों से जूझने की हिम्मत देती ये कविताएँ, कँटीले सफ़र पर साहस के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती, घायल हुई कोमल संवेदनाओं को नरमी से सहलाती हमारे भीतर उतरती एक ख़ामोश दस्तक-सी लगती हैं। अहसास के धरातल पर खड़े इस संग्रह की कई कविताएँ अनायास ही हमारी उँगली पकड़कर साथ-साथ चलने लगती हैं। अपने भीतर की छटपटाहट को कवयित्री बड़ी बेबाकी से काग़ज़ पर उतार देती है। शब्दचित्रों से गढ़ी हुई ये कविताएँ सचमुच जीवन का कैनवास नज़र आने लगती हैं। जीवन के सारे रंगों को अपनी अनुभवी कूची से लपेटकर वे जब नये जीवनचित्र का सृजन करती हैं तो चित्रकला के अनेक शब्द—अत्यन्त प्रतीकात्मक हो उठते हैं—सदी को करना है आह्वान/ देना है उसे नया आकार/ बना लो आकाश का कैनवास/ घोल दो घनेरे बादलों को/ पैलेट में, बना लो हवाओं को माध्यम/ चित्रित कर दो वक़्त को । प्रतिष्ठित चित्रकारों— सल्वाडोर डाली, अमृता शेरगिल, हुसेन का स्मरण कविताओं में जब आता है तो एक नये अर्थ का सृजन कर जाता है—मैला-कुचैला, अधफटा /ब्लाउज, उठंग लहँगा /ओढ़े तार तार ओढ़नी /नन्ही बच्ची हाथ में लिये कटोरा /माँगती रोटी के चन्द लुम्मे/हुसेन की पेंटिंग नहीं /भूखी है दो रातों से। संग्रहणीय और बार-बार पढ़ने योग्य एक कविता-संग्रह।

वाज़दा खान (Vazda Khan )

जन्म: सिद्धार्थ नगर, उत्तर प्रदेश। शिक्षा: राजस्थान की किशनगढ़ शैली की चित्रकला पर वर्ष 2000 में पीएच.डी (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)। पेशे से चित्रकार। पहली बार 1995 में चित्रों की सह-प्रदर्शनी : अभि

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