आँख का नाम रोटी - हरि भटनागर की कहानियाँ मध्यवर्गीय व्यक्तिवादिता और प्रगतिशीलता का गुपचुप अतिक्रमण करती हैं। उनकी कहानियों में उद्घाटित यथार्थ निम्न मध्यवर्गीय जीवन का है जिसे 'तलछट' शब्द के साथ आलोचना ने रेखांकित किया था। वस्तुतः हरि भटनागर उन कथाकारों में अव्वल हैं जिन्होंने कहानी को मध्य और निम्न मध्यवर्ग के रोमान से निकालने का जोखिम भरा काम किया। गाँव के जीवन को दया और करुणा से देखने के नज़रिए के बरअक्स हरि भटनागर ने उन अन्तर्विरोधों और मूल्यहीनता को देखा जो वहाँ आकार ले रहा था। तलछट की भली-भली सी तस्वीर, भोले-भाले ग्रामीण हरि की कहानियों में उस तरह न आकर अपनी शरारतों और चालाकियों सहित प्रवेश करते हैं इसलिए वहाँ चमक, सनसनी और भाषा का रिझाऊ खेल अनुपस्थित है। आपको हरि की कहानी में साँवला ख़ुरदुरापन मिलेगा जो उन्हें अपने समकालीनों से अलग करता है। भूमण्डलीकरण के बाद आये इस जीवन में बदलावों की शिनाख़्त इन कहानियों में तहों-अन्तर्तहों में विन्यस्त है। 'आँख का नाम रोटी', 'बला', 'कथरी', 'माई', 'फ़ाका' जैसी कहानियों का त्रासद यथार्थ जुदा है। इस तरह का विश्वसनीय जीवन इधर की कहानियों में लगभग नहीं है। इसके अलावा भी संग्रह की कहानियों में अलक्षित जीवन-समाज को देखने की सलाहियत चमत्कृत करती है। हरि भटनागर अपनी सूक्ष्म दृष्टि, संवेदना, भाषा और कथ्य के स्तर पर एक ऐसा प्रतिसंसार रचते हैं, जो हमारी पहुँच में होकर भी दृष्टि से ओझल है। हमारे अन्तस के संवेदना तन्त्र को जगाती ये कहानियाँ नामालूम जीवन का प्रत्याख्यान रचती हैं।
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