सचमुच बहुत निराश किया उसने अपने घरवालों को । उसकी माँ सोचती थी कि वह कुशाग्र बुद्धि का है। पढ़ने में अच्छा है। उसे डॉक्टर बनना चाहिए। कभी किसी हॉस्पिटल में जाना पड़ जाये तब डॉक्टर होने का महत्त्व समझ में आता है। सफ़ेद कोट पहने, गले में स्टेथस्कोप लटकाये और गम्भीर मुद्रा धारण किये हुए डॉक्टर देवदूत से कम नज़र नहीं आते। आम आदमी टकटकी लगाये डॉक्टर की कृपादृष्टि का इस तरह मोहताज होता है कि साक्षात् ईश्वर, अगर कहीं है तो पिघल जाये। माँ ने उसे अपनी गिरती हुई सेहत का वास्ता देकर समझाना चाहा कि उसका साइंस पढ़ना और डॉक्टर बनना क्यों बेहद ज़रूरी है।
- कहानी अंश निकम्मा लड़का
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