Saboot

Arun Kamal Author
Paperback
Hindi
9789352295364
3rd
2021
88
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सबूत - सुपरिचित कवि अरुण कमल के इस दूसरे संग्रह में पिछले संग्रह - ' अपनी केवल धार' - के बाद की कविताएँ संकलित हैं। ये कविताएँ निश्चित रूप से उनकी पिछली कविताओं से सम्बद्ध हैं, जैसा कि हर व्यक्तित्ववान कवि के साथ होता है; साथ ही साथ ये वैचारिक तथा भावात्मक दोनों ही स्तरों पर कवि के रूप में उनके विकास को भी अंकित करती हैं। अब 'हरापन भी पककर स्याह हो गया है।'

अरुण कमल की कविताओं की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यहाँ कुद भी नितान्त निजी या निपट सामाजिक नहीं है। व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों एक हो गये हैं । अरुण कमल के लिए निजी तथा सामाजिक या राजनीतिक प्रसंग एक-दूसरे से अभिन्न और अखण्ड हैं। उनकी कविता सम्पूर्ण मानव-स्थिति की कविता है। इसीलिए छोटे से छोटे विषय पर लिखी जाकर भी कविता अपने अर्थ दूर तक प्रक्षेपित करती है और बाह्य तरंगों को हर जीवन- कोशिका में सुना जा सकता है। व्यक्तिगत जीवन के सुख-दुख, 'हर कदम की मोच' से लेकर अफ्रीका के संघर्षों तथा न्यूट्रान बम की त्रासदी तक उनकी कविता एक चौड़ा 'जीवन का चाप' बनाती है। इसके लिए कवि ने अनेक लयों, रूपों का उपयोग किया है और नये बिम्ब रचे हैं। इन कविताओं का एक अपना रचाव है-देखते ही देखते मिट्टी एक आकार लेने लगती है और कविता सम्पन्न होती है।

इतना कहने में कोई संकोच नहीं कि अरुण कमल की ये कविताएँ समकालीन हिन्दी कविता को एक नया स्वर देती हैं। ये कविताएँ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्षशील मानव के पक्ष में, जीवन मात्र के पक्ष में 'सबूत' हैं।

अरुण कमल (Arun Kamal)

15 फरवरी, 1954, नासरीगंज, रोहतास (बिहार) में जन्म। छह कविता पुस्तकें अपनी केवल धार, सबूत, नये इलाके में, पुतली में संसार, मैं वो शंख महाशंख और योगफल। तीन कविता चयन भी प्रकाशित। दो आलोचना पुस्तकें कवि

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