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कथाकार कुसुम अंसल की अधिकतर कहानियाँ उच्चवर्गीय स्त्री की वेदना को व्यक्त करती हैं। इसके पूर्व हिन्दी कथा-साहित्य में मध्यवर्गीय मानसिकता ही कथा के केन्द्र में रही है। उन्होंने उच्चवर्गीय स्त्री के -जो चेहरे चमकते, दमकते नज़र आते हैं, लोग कहते हैं इन्हें क्या दुःख होगा, उनके तनाव, संघर्ष और निरन्तर अकेले होते जाने की पीड़ा को पाठकों के साथ साझा किया है। यहाँ संवेदनशील कथाकार वैभव के बीच रहकर भी अपने भीतर एक सांस्कृतिक अलगाव लगातार महसूस करती है। उच्च वर्ग में आने के लिए स्त्री क्या-क्या समझौते कर रही है जबकि उसमें प्रतिभा भी है- यह सब उनकी कहानियों में मिलता है। उनकी कहानियों में जीवन का वैविध्य और विस्तार और दर्शन की बृहत्त्रयी है। कुसुम अंसल की कहानियाँ बाहर से भीतर की ओर चलती हैं और उसकी परतों को व्यक्त करती हैं। यह एक तरह से भीतर की भाषा है- एक अद्भुत सौन्दर्यात्मकता से आपूरित। वे अपनी कहानियों में सारी अनकही बातें कहती हैं परन्तु कहीं भदेस चित्र-दृश्य नहीं हैं।
- मजीद अहमद
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