Pariksha Guru

Hardbound
Hindi
9788181430519
3rd
2020
176
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'परीक्षा गुरु' हिन्दी की एक स्थायी निधि है। इसे हम हिन्दी उपन्यास के डेढ़ सौ वर्षों के सफर में एक मील का पत्थर कह सकते हैं। जिन दिनों उपन्यास तिलस्मी, ऐयारी और अन्य तरह की चामत्कारिक घटना-बहुल शैली में लिखा जाता था, और उसमें व्यक्ति और समाज के आन्तरिक संघर्षों और समस्याओं पर नहीं, ऊहात्मक कल्पनाप्रवण ऐन्द्रजालिक वातावरण की सृष्टि पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था, उन दिनों लाला श्रीनिवास दास का 'परीक्षा गुरु' प्रकाशित हुआ, जिसमें जीवन की समस्याओं से मुख मोड़ कर तिलस्मी गुहा कोटरों में शरण लेने की प्रवृत्ति का एकदम अभाव था। उन्होंने अंग्रेजियत और उसके बढ़ते हुए विषैले प्रभाव में घुटती हुई भारतीयता की सुरक्षा की समस्या को सामने रखा। इस प्रकार की समस्यानुकूल कथा-वस्तु के चयन और उसके उपस्थापन के अद्भुत साहस के लिए श्रीनिवास दास की जितनी भी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है। 'परीक्षा गुरु' उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि उसने हिन्दी उपन्यास की जीवनहीन एकरस चमत्कार-बहुल कथा-परम्परा को तोड़कर यथार्थवादी वस्तु को ग्रहण किया। 'परीक्षा' गुरु' का लेखक सामाजिक सुधार को साहित्य का प्रमुख प्रयोजन मानता है। इसी सोद्देश्यता के कारण यह उपन्यास तत्कालीन अन्य उपन्यासों से बिल्कुल भिन्न हो गया है।

लाल श्रीनिवास दास (Lala Shrinivas Das)

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