Jean Paul Sartre

ज्याँ पॉल सार्त्र

बीसवीं शताब्दी के प्रसिद्ध दार्शनिक तथा नाटककार ज्याँ पॉल सार्त्र फ्रेंच साहित्य में अपना पृथक् स्थान रखते हैं। यह नाटक मनुष्य की विवशता और ज़िन्दगी के नरक से न निकल पाने की छटपटाहट की अभिव्यक्ति है। सार्त्र का अस्तित्ववादी दर्शन 'स्व' की पहचान में कर्म की खोज करता है, और यह बताता है कि स्वर्ग और नरक जैसी परिकल्पनाएँ मिथ्या हैं, हर व्यक्ति को इसी जन्म में अपना-अपना नरक भोगना पड़ता है, जिससे निकल पाने का कोई रास्ता शेष नहीं । प्रकारान्तर से यह नाटक पाश्चात्य सभ्यता और दाम्पत्य जीवन की खण्डित विश्वसनीयता को भी रेखांकित करता है ।

एक नाटक के रूप में बन्द रास्तों के बीच बहुत सुन्दर और सुगठित रचना है, जिसके संवादों की चुस्ती हमें एक रहस्यमय संसार में ले जाती है और यह बताती है कि अन्ततः मृत्यु ही जिन्दगी को नियति प्रदान करती है।

मंचन की दृष्टि से भी इसमें वे सारे तत्त्व मौजूद हैं जो इसे पूर्ण तथा अभिमंचीय बनाते हैं।

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